गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

शिखर की अंतरिक्ष भाग-४ कहानीः हेम चन्द्र जोशी


अंतरिक्ष मे खेलकू
पिछले 5-6 दिनों से शिखर ने अंतरिक्ष नगर व अंतरिक्ष के विषय में काफी जानकारी हासिल कर ली. उस ने पाया कि कनी दीदी और रजत स्कूल नहीं जा रहे हैं. उस का विचार था कि उसी की भांति उन दोनों की भी छुटिट्यां चल रही हैं. पर एक बात जान कर वह चक्कर में पडा हुआ था.  रोज एक खास समय के लिए कनी और रजत घर के एक दरवाजे में घुस जाते थे और फिर घंटों पता नहीं क्या करते थें.

शिखर ने मौका देख कर कमरे में घुसने का प्रयत्न भी किया, पर दरवाजा न खुल सका. गौर करने पर उसे मालूम हुआ कि कमरे के दरवाजे पर एक विशेष ताला लगा हुआ है जिस की चाबी शायद कनी व रजत के पास थी. जब उस से नहीं रहा गया तो मिलने पर उस ने रजत से पूछा "भैया, आप इस दरवाजे के अंदर  घुस कर क्या करते रहते हैं?"  

"क्यों, तुम क्यों पूछ रहे हो ?" प्रश्न कनी  ने किया. 

शिखर बोला, "मैं अकेले बैठे बैठे बोर हो जाता हूं. मैं ने अंदर जाने की कोशिश की, पर दरवाजा खुला ही नहीं. "

कनी ने कहा, "शिखर, यह हमारा स्कूल है. हम यहां पढने जाते हैं. इसलिए हम तुम्हें वहां नहीं ले जातें."

"आप मुझे बेवकूफ बना रहीं हैं दीदी, क्या स्कूल घर के अंदर हो सकता है?फिर इस के अंदर तो केवल तुम दोनांे ही जाते हो. मुझे सच सच बताओं?" शिखर ने मचल कर कहा.

उस की बात सुन कर कनी और रजत दोनों को हंसी आ गई. दोनो एक दूसरे की ओर देख कर शिखर को और ज्यादा संदेह हो गया. उसे लगा कि दोनों  उस से कुछ बात छिपा रहे हैं.

शिखर को दोनों की बातों में बिलकुल भी वि’वास न हुआ. उस को देख देख कर जब रजत और कनी हंसते तो उस का शक और भी ज्यादा बढ जाता.  पर  अन्त में उस ने हार मान कर पूछना बंद कर दिया. उस ने सोचा कि वह शाम को मामाजी से पूछताछ करेगा. रोजाना के अनुसार कनी और रजत दोनों फिर गायब हो गए.

मामी को अकेला देख कर शिखर ने उन से पूछा "कनी और रजत कहां चले गए?"

मामी ने कहा, "क्यों तुम को दोनों बता तो रहे थे. बेटे, वे सचमुच पढने गए हैं. यहां ज्यादा बच्चे नहीं हैं, इसलिए अलग से स्कूल  भी नहीं बनाया गया हैं। हर घर में कंप्यूटर का एक कमरा बना हुआ हैं. इन्हीं कंप्यूटरों पर बच्चे अपने अपने घरों में बैठ कर ही कक्षा की भांति शिक्षा लेते हैं."

 मामी की बात सुन कर शिखर का शक काफी हद तक दूर हो गया, पर हलकी सी शंका अभी भी बनी हुई थी. कनी और रजत जब वापस आए, उसी समय मामाजी भी आ पहुंचे तब रजत और कनी ने चिल्ला कर कहा, "पिताजी, कल हमारे स्कूल में वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता है और हमारी कक्षाओं की छुटटी हैं." 

शिखर ने चॊक कर पूछा,  "रजत, यह बात तुमको कैसे पता चली. तुम तो पिछले कई दिनों से कहीं गए ही नहीं?"

रजत बोला, "अरे यार, यह तो आन हमें कक्षा में बताया गया. कंप्यूटर में इस सूचना को बारबार दिखाया गया. मैं ने तो बहुत से खेलों में अपने नाम भी दे दिए है."

शिखर ने पूछा कि वार्षिक खेलकूद कहां पर करवाए जाएंगे क्योंकि अंतरिक्ष नगर में कहीं उस को मैदान तो दिखा नहीं था.

तब मामाजी ने बताया कि अंतरिक्ष नगर की छत पर सब प्रकार की सुविधा है. पर वहां अंतरिक्ष सूट पहन कर जाना पडेगा. 
"तब तो वहां खेलकूद भी अंतरिक्ष सूट पहन कर होंगे?" शिखर ने चॊक कर पूछा.

मामाजी ने उस को बताया कि वह ठीक सोच रहा है. कल वह भी मैच देखने जाएगा. उन्होंने आगे बताया कि अंतरिक्ष नगर के खेलकूदों को अपना विशेष महत्व है वे धरती की भाति खेलो को तो अंतरिक्ष नगर में नहीं खेल सकते हैं, पर इस बात का प्रयास किया जाता है कि खेलों के प्रति बच्चों को लगाव बना रहें.

मामाजी की बात सुन कर शिखर खुश हो गया. उस ने पूछा कि क्या वह भी अंतरिक्ष नगर के खेलकूदों  में भाग ले सकता है?

मामाजी ने कहा कि यह तो शायद संभव न होगा क्योंकि उस को अंतरिक्ष में खेलने का अभ्यास नहीं है. साथ ही उसे खेलने में परेशानी  भी होगी क्योंकि वहां खेलों में अंतरिक्ष के हिसाब से थोडा सा बदलाव भी लाया गया है. पर उन्होंने शिखर को खेलकूद प्रतियोगिता को दिखाने को वादा किया. उन की बात सुन कर शिखर का चेहरा खिल उठा.

 खेलों के बारे में सोचते सोचते शिखर  को न जाने कब नींद आ गई. वह सपने में अपने को अंतरिक्ष सूट पहने देखने लगा. कभी क्रिकेट. अंतरिक्ष सूट की वजह से उसे लगा कि उस का शरीर बहुत भारी हो गया है और उस से उस की हरकत बिलकुल धीमी पड गई है.

दूसरे दिन उठते ही शिखर खेलकूद प्रतियोगिता को देखने के लिए झटपट तैयार हो गया. जब मामाजी उठे तो शिखर उस समय जूते पहन रहा था. मामाजी ने चैंक कर पूछ कि वह इतनी जल्दी तैयार क्यों हो गया है?


शिखर ने याद दिलाया कि उन को उसे खेलकूद प्रतियोगता दिखाने ले जाना है.

मामाजी ने चॊक कर घडी देखी. उन्होंने शिखर से पूछा कि कनी और रजत कहां हैं? शिखर ने बताया कि वे दोनों तो कभी के जा चुके हैं. उनके दोस्त सुबह सुबह उन को बुला कर ले गए हैं.

शिखर के उतावलेपन को देख कर मामाजी फटाफट नहाने चले गऐ और फिर कपडे बदल कर तैयार हो गए. उधर मामी ने भी नाश्ता खाने की मेज पर लगा दिया. इस के बाद मामाजी व शिखर ने अपने अपने अंतरिख सूट पहने. मामाजी ने घडी देखी और तेजी से चलते हुए एक जगह पहंुचें.

शिखर ने देखा, उस दरवाजे के उपर लिखा था, खेल मैदान के लिए लिफट  उस दरवाजे से लोग आजा रहे थे.  शिखर और मामाजी नंबर आने पर  लिफट में प्रवेश कर गए. पल भर में वे अंतरिक्ष  नगर की छत पर पहुंच गए थे. शिखर ने पाया    कि इस का एक हिस्सा सपाट मैदान की भांति है, जिस में कृत्रिम घास बिछा कर मैदान में बच्चों की चहलपहल थी,  किंन्तु कोई पहचान नहीं जा सकता था, क्योंकि सब अंतरिक्ष सूट पहने हुए थे.

मामाजी, कौन सा खेल होने जा रहा है शिखर ने पूछा.

मेरे विचार से ये क्रिकेट खेलने जा रहे हैं.

तभी कंप्यूटर स्क्रीन में दोंनों टीमों के नाम आने शुरू  हो गए.  शिखर ने देखा कि रजत फाइव स्टाल इलेवन की ओर से खेल रहा है. पर उनका एक भी खिलाडी अभी तक मैदान में नहीं पहुंचा था, जिस के लिए स्क्रीन पर बारबार सूचना दी जा रही थी. इसी कारण काफी देर तक खेल शुरू न हो सका मैदान में कोई शोरशराबा नहीं था, क्योंकि हवा न होने से आवाज इधर उधर नहीं जा सकती थी. पर कानों में हेडफोन लगाने पर बहुत सी आवाजें सुनी जा सकती थी. 

तभी किसी ने शिखर को पीछे से हिलाया तो उस ने मुड कर देखा फाइव स्टार टीम का नंबर 5 खिलाडी खडा था उस ने एक कागज पढने को दिया, जिस पर लिखा था, शिखर हमारी टीम में एक लडका कम है तुम चाहो तो हमारी ओर से खेल सकते हो - रजत.

शिखर का मुंह आ’चर्य से खुला का खुला रह गया. रजत उस को खेलने को बुला रहा था. वह प्रसन्नता से उठ खडा हुआ मामाजी ने भी उसे जाने के लिए  इशारा कर दिया. टीम में उस को नंबर 8 मिला.

रजत ने मैदान के एक कोने मेंे टीम के अन्य खिलाडियों के साथ शिखर  को अभ्यास करवाया ताकि उस को अंतरिक्ष नगर में खेलने में कठिनाई न हो.  रजत शिखर के खेल को देख कर चक्कर में पड गया. वह बडी तेजी से गेंद को स्पिन करा रहा था टीम का कप्तान भी शिखर का खेल देख कर खुश हो गया.

खेल शुरू हो गया. शिखर ने पाया कि जरा सी जोर से पडने पर गेंद बहुत उछल रही है. पृथ्वी के मुकाबले गेंद की उछाल काफी अधिक थी. खेल में प्रयोग किए जाने वाला बल्ला भी काफी पतला और हलका था. शिखर समझ गया कि यदि पृथ्वी के बारबर भारी बल्ला प्रयोग में लाया जाए तो गेंद मारने पर वह बहुत तेजी और बहुत दूर चली जाएगी. इसलिए गेंद पर हलकी चोट चली जाएगी.  इसलिए गेंद पर हलकी चोट पहंुचाने के उद्दे’य से हलका बल्ला  बनवाया गया है. शिखर को लगा कि खेलने में काफी कम ताकत लग रही है. कैच पकडते समय वह काफी उची छलांग भी आसानी से लगा सकता है.

जब शिखर का बालिंग करने को दी गई तो उस ने कमाल ही कर दिया. पता नहीं क्या चक्कर हो गया कि उस की बाल को कोई खेल ही नहीं पा रहा था. शिखर को बालिंग करना बडा आसान लग रहा था. एक तो स्टंप एक दूसरे से काफी दूर पर थे और उन की उंचाई भी पृथ्वी के मुकाबले काफी अधिक थी. अंतरिक्ष में काफी समय से रहने के कारण अन्य खिलाडी काफी जल्दी  थक रहे थे. जबकि शिखर अपने को चुस्त महसूस कर रहा था.

खेलने की बारी आने पर शिखर ने शानदार बैटिंग की और देखते देखते वे मैच जीत गए. टीम के खिलाडियों ने शिखर को बपने कंधों पर उठा लिया किसी को वि’वास नहीं था कि टीम का सब से छोटा  खिलाडी सब से अच्छा खेलेगा. तभी रजत ने उस से पूछा कि क्या वह बैडमिंटन भी इतना ही अच्छा खेलता है शिखर ने सहमति में सिर हिला दिया.

रजत ने उस को अंतरिक्ष नगर का बैडमिंटन रैकेट व चिडिया शटल काक दिखाई. शिखर चोक गया रैकेट के तार बिलकुल ढीले थे शिखर ने अंदाजा लगया कि तारों को जानबुझ कर ढीला रखा गया ताकि मारने पर चिडिया कोर्ट से बाहर न चली जाए. उस ने चिडिया में काक के स्थान पर एक गुब्बारा सा लगा था, जिस के अंदर कोई द्रव भरा हुआ था चिडिया में पंख भी नहीं लगे थे.

उस ने आ’चये से मामाजी की ओर देखा तो उन्होंने बताया कि पृथवी में पंख एक कार्क  के उपर लगे रहते हैं काक वाला हिस्सा भारी होता और पंख वाला हलका. इसलिए चिडिया जब भी नीचे को गिरती है तो इस का काक वाला हिस्सा नीचे को रहता है. चिडिया में लगे पंख हवा को काटते हैं, जिस से वे उस की चाल को हलका करते हैं. पर अंतरिक्ष में हवा तो है नहीं, जिस से कि शटल काक की गति कम हो सके. इसलिए यहां विशेष प्रकार के गुब्बारे के अंदर द्रव भर दिया जाता है और इसी से बैडमिंटन खेला जाता है.

शिखर ने रैकेट और गुब्बारे से बैडमिंटन खेलने की कोशिश की. थोडी देर में उस का हाथ नियंत्रित हो गया. उस को खेलने में मजा आने लगा. तभी उसे कहीं शोर सुनाई देने लगा. शिखर को समझ में न आया कि क्या चक्कर हो गया है, लोगों में इतनी घबराहट क्यों फैल गई है.

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

कहानी:बैसाखियाँ : हेम चन्द्र जोशी




बैसाखियाँ
हमारी कक्षा आठ की क्लास टीचर स्कूल छोड़ कर चली गयी थीं। उनकी जगह आई नई क्लास टीचर बहुत ही सख्त थीं। निगाहें इतनी तेज थीं कि उपस्थिति लेते लेते भी समझ जाती थीं कि कक्षा के किस कोने में क्या गड़बड़ चल रही है। उनकी यह तीसरी आंख कहां थी ? हम सबके लिए यह एक विचारणीय प्रश्न था।

कक्षा में पहले दिन आते ही उन्होंने हमसे कहा, ”मेरे लिए यह कक्षा एक परिवार के समान है। अच्छा और बुरा, होशियार व कमजोर तथा अमीर या गरीब, सभी छात्रा मेरे लिए एक समान हैं। मैं चाहूंगी कि सब बच्चे कक्षा में मेलजोल से रहें और एक दूसरे की सहायता करें। गलती करने वाले को मैं दस बार माफ कर सकती हूं बशर्ते उसको अपनी गलती का अहसास हो।“ इसके बाद उन्होंने हमारी कापी किताबें, नाखून व जूतों का निरीक्षण किया और आवश्यक बातें कहीं।

मुझको अपनी नई अध्यापिका पंत मैंडम बहुत अच्छी लगी। पर मुझे मन ही मन शंकायें भी हो उठीं। मुझे लगा कि उनके सामने मेरे बहाने अब नहीं चल पायेंगे। किन्तु मुझे अपने पिताजी के ओहदे पर पूरा विश्वास था। मुझको मालूम था कि उनके रहते मेरा इस स्कूल में विशिष्ट स्थान ही रहेगा। जब पंत मैडम को पता चलेगा कि मैं श्री सहाय की बेटी हूं तो वे स्वयं ही मेरे प्रति नरम हो जायेंगी।

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सारी कक्षा पंत मैडम को प्यार करने लगी थी ओर मुझको उनके नाम से भी घबराहट होती थी। मैं आये दिन घर में अपने पिताजी से मैडम की शिकायतें करती थीं। मंैने पिताजी के मन में यह विचार भी भर दिया था कि नई मैडम को गणित व विज्ञान पढ़ाना बिल्कुल भी नहीं आता है। टैस्टों में आये दिन मेरे खराब नम्बर आते थे पर मैंने कभी भी इसका खुलासा नहीं किया। मुझे भी पूर्ण विश्वास था कि मैडम को पिताजी के पद के बारे में पता नहीं चला है इसलिए वे मुझे नम्बर नहीं दे रही हैं।

फिर एक दिन कक्षा में गणित के टैस्ट की कापियां दिखायी गयी। मुझे टैस्टों में शून्य अंक प्राप्त हुआ था। मैडम ने खासतौर पर मुझे अपनी मेज पर बुलाया और धीरे से कहा, ”प्रकृति तुम्हें अपने पिताजी के सम्मान का भी ध्यान नहीं, शहर के इतने बड़े आदमी की लड़की फेल होगी तो लोग क्या कहेंगे ? मुझे अफसोस है कि तुम्हारी जैसी होशियार व सुविधा सम्पन्न छात्रा का शून्य अंक आया है। जाओ और मेहनत करो। यदि आवश्यकता हो तो तुम मेरी सहायता ले सकती हो।“

मैंने सिर झुकाये उनकी बात सुनी और कापी लेकर वापस अपनी सीट पर चली आई। कक्षा में मैडम ने किसी को भी नहीं बताया कि मेरा शून्य अंक आया है। मैंने भी शून्य के आगे एक डंडा खींच कर उसे दस बना दिया। मेरे आसपास के छात्रों ने यही समझा कि मेरे पूरे दस में से दस अंक आये हैं। अब मैं समझ गयी थी कि पंत मैडम को पता है कि मैं सहाय साहब की बेटी हूं। फिर भी उन्होंने मुझे अच्छे नम्बर नहीं दिये थे ? शायद उनकी न्याय की तराजू में सिफारिश का बाट नहीं था।

मेरे लिए एक नया अनुभव था। आज तक मैंने पढ़ाई में मेहनत करने की जरूरत नहीं समझी थी। स्कूूल की सभी शिक्षिकायें मुझे जानती थीं और स्वयं ही मेरा ध्यान रखा करती थीं। किसी भी शिक्षक ने कभी भी मुझे यों पंत मैडम की तरह बौना नहीं बनाया था। स्कूल में सभी जानते थे कि फेल होने पर मेरे पिताजी आकर मेरी सिफारिश करेंगे। अतः मेरे मन में सदा एक ही बात रहती थी कि अंत भला तो सब भला। मुझे पूर्ण विश्वास था कि सारे टैस्टों और परीक्षाओं के अंकों को दरकिनार कर मुझे अगली कक्षा में अवश्य ही चढा़ दिया जाएगा।

छमाही की परीक्षा में मेरे अच्छे अंक नहीं आए ओर फिर वार्षिक परीक्षायें भी गड़बड़ा गयी। मैंने मां को बताया कि मैं इस बार अवश्य ही फेल हो जाउंगी। मां ने पिताजी से कहा कि स्कूल जाकर मेरा रिजल्ट देख लें। पहले तो पिताजी नाराज हुए फिर किसी तरह उन्होंने स्कूल जाने के लिए हामी भर ही ली।

मैं पिताजी के साथ घमण्ड से स्कूल गयी जैसे कि मुझे इसी दिन का इंतजार हो। मैं मैडम को दिखा देना चाहती थी कि मैं क्या चीज हू। मैं मुस्कराते हुए जब मैडम के पास पहुंची तो उन्होंने देखते ही पिताजी से कहा - ”सहाय साहब, आज आपको समय मिल गया है अपनी बच्ची के बारे में सोचने का। आप तो बहुत व्यस्त रहते हैं। आपने साल में एक भी बार यह जानने की कोशिश नहीं की कि आपकी बच्ची स्कूल में क्या कर रही है ? अब आप क्यों आए हैं ?“

पिताजी को शायद इन अप्रत्याशित प्रश्नों की आशा न थी। फिर भी सकुचाते हुए उन्होंने अपने मन की बात पंत मैडम से कह दी । पंत मैडम के व्यक्तित्व के सामने मेरे पिताजी छोटे पड़ रहे थे। यह देखकर मेरा सिर शर्म से झुक गया। अंत में पिताजी ने मैडम से कहा - ”मैडम, प्रकृति का पूरा एक साल खराब हो जाएगा। आप कृपा कर इसको पास कर दीजिए।“

पंत मैडम का चेहरा नाराजगी से भर उठा और उन्होंने कहा, ”अगर मुझे पास ही करना होगा तो मैं उस गरीब लड़के को करूंगी जो प्रकृति से अधिक नम्बर लाया है। जिसकी कोई सिफारिश नहीं है। एक सुविधा सम्पन्न लड़की को नहीं, जिसने जानबूझ कर साल भर पढ़ाई नहीं की। मैं जानती हूं आपकी लड़की एक कुशाग्र बुद्वि की छात्रा है। पर आपके अंधे लाड़ प्यार ने इसको कमजोर बना दिया है। मुझे समझ में नहीं आता है कि आने वाले समय में आप कब तक इसको अपनी सिफारिशों का सहारा देते रहेंगे ? सहाय साहब, अपने पद की बैसाखियों के सहारे अपनी अच्छी खासी बेटी को अपाहिज बनाने की कोशिश मत करिये। यही मेरा निवेदन है।“

मेरे पिताजी निरुत्तर थे। मुझे भी अपने ऊपर अत्यधिक लज्जा आने लगी। जब हम वापस मुड़ने को हुए तो मैडम ने कहा, ”बेटी अब यदि तुम अगले साल तिमाही परीक्षा में सत्तर प्रतिशत अंक ले आई तो मैं तुम्हें अगली कक्षा में भेजने की कोशिश करूगी।“ मेरा सारा जोश समाप्त हो चुका था। मुझे पहली बार लगा कि मैं वास्तव में पिताजी की बैसाखियों के सहारे ही खड़ी थी।

फिर जब तिमाही परीक्षा में मेरे पिचहत्तर प्रतिशत अंक आये पंत मैडम ने कहा कि अभी भी तुम्हारे अंक तुम्हारी योग्यता के हिसाब से कम हैं। फिर मुझे अगली कक्षा में बैठा दिया गया। पिताजी अत्यन्त प्रसन्न थे। वे मिठाई का डिब्बा लेकर मैडम को देने आये तब मैडम ने कहा, ”सहाय साहब, मैं तो कक्षा मे हमेशा एक सा ही पढ़ाती आई हूंॅ मेहनत तो आपकी बच्ची ने की है। मिठाई की हकदार तो प्रकृति है।“ उन्होंने मिठाई का एक छोटा सा टुकड़ा लेकर डिब्बा वापस कर दिया।

एक दो वर्ष बाद पंत मैडम स्कूल छोड़ कर चली गयी। पर वे मेरे जैसे न जाने कितने बच्चों के दिलों में कर्तव्य व लगन की ऐसी ज्योति जला गई कि जो समय के साथ और ज्यादा प्रज्जवलित होती जा रही है।


मैंने मेडिकल कालेज में पंत मैडम के आशीर्वाद से दाखिला ले लिया है। अब बार बार ईश्वर से प्रार्थना करती हू कि वे मुझको इतनी शक्ति दें कि मैं भी पंत मैडम की भांति दूसरों को उनकी बैसाखियों से छुट्टी दिलवा सकूं।
 

कैंचियों से मत डराओ तुम हमें
हम परों से नहीं होसलों से उड़ा करते हैं
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