सोमवार, 16 अप्रैल 2018

हैरानी

★■हैरानी■★

जिंदगी 
तुझसे हैरान हूँ
बार बार
इस बात से 
परेशान हूँ
ये दिलकश 
जिंदगी के लम्हे
क्यों 
इस तरह गुजार दिये।
कुछ पल
शिकायतों में
और कुछ
आशंकाओं में
निकाल दिये ।
क्यों समझ न सका
कुछ भी तो नहीं
यहाँ अपना
आया हूँ यहाँ मैं 
कुछ पल 
किसी से उधार लिये !
ये सामान
जो किसी का भी नहीं कभी 
इकट्ठा
कर बैठा हूँ क्यों 
इतने अरमान लिये ।
कल सुबह की तो
खबर नहीं
क्यों जीता रहा
अब तक 
इतना अभिमान लिये ?
अब जब 
ज़िंदगी का अर्थ समझा 
जड़ व चेतन का 
फ़र्क़ समझा 
शायद देर हो चुकी 
तभी तो कहते हैं आयु व बुद्धि में
साथ नहीं होता।
बस ख़ुशी है अब इतनी
जाऊँगा यहाँ से
बिना कोई अरमान लिये😋😋

हेम/  16.04.2018
डाक्टर हीरक भट्टाचार्य की डेंटल क्लीनिक से 

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

भाषा

★★भाषा ★★

खराब हूँ
क्या करूँ
अपनी ही भाषा बोलता हूँ।
सबकी बातें
एक ही तराज़ू में
तौलता हूँ ?
नहीं कर पाता हूँ
कहीं भी काट छाँट
सच के लिये
क्यों रखता हूँ 
एक सा ही बाँट ?
ऐसे कहीं
जिंदगी चलती है ?
दूसरे की भाषा भी तो
यहाँ समझनी पड़ती है  !
यह जिंदगी है
जनाब !
वक्त व स्थान के हिसाब से
यहाँ भाषा 
पल पल बदलती है
अपनी ही भाषा का 
अनचाहा मोह 
अच्छा नहीं है यहाँ
नफे नुकसान को
समझे बिना
सच बोलना
अच्छा  है कहाँ ?
समझदार हो
समझ लो जरा
रोम में रोमन बोले बिना
सफलता मिलती है कहाँ ?😎😎
पर ये लोग हैं
हर हाल ही में 
बोलते ही रहते हैं
खराब ही रहता हूँ
तब भी 
क्या करूँ
जब चेहरों को
देख कर मैं यहाँ बोलता हूँ !!🙁🙁

हेम/ 08.04.2018

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

अद्भुत अँधेरे

माँ लौटा दे मुझको
अंधेरे से वे पल 
नाभि से जुड़ा 
जब तेरी शय्या पर पड़ा था
धक धक 
वो धक धक 
तेरी दिल की धड़कनों का
मैं ने न जाने कितना 
अद्भुत संगीत सुना था 
खन खन वो खन खन
चूड़ियों की वो खन खन
हँसी का वो अमृत
न जाने वो मैंने कब कब पिया था 
माँ लौटा दे मेरे 
अँधरे से वो पल !! 
सूनसान था
छाया था अँधेरा
ये कैसी थी दुनिया
ये कैसा था डेरा
न डर था कहीं भी
न कोई था संकट
कहाँ कब पता था
तू भूखी थी सोयी
नहीं ये भी पता था
तू खुश थी या रोयी
मुझे तो तेरा स्पर्श मिला था
तेरे छूने पर मैं इतरा के हिला था !!
माँ लौटा दे मेरे
अँधेरे से वो पल
जब ममता में तेरी
मैं पल पल जिया था !
कहाँ से मैं आया 
कैसे मैं आया 
कब ये मिला था 
मुझे यह स्पंदन 
कैसे बना मैं
माटी से चंदन
सुनी थी कब तू ने 
मेरे दिल की पहली धड़कन 
छुआ था कब मुझको
जब मैं पहली बार हिला था 
मारी थी कुलांचें 
बताने को तुझको 
प्रकट हो गया हूँ 
जताने को तुझको
कोई लौटा दे मेरे
वे सुनहरे अँधेरे
जिसमें नहीं थे
साँझ और सवेरे !!
है कैसी पहेली
है कैसी ये दुनिया
शुरू में अँधेरा
अन्त में भी तो अँधेरा !!
अँधेरे से अँधेरे का
अजब सिलसिला है
पर कभी क्या कोई
उससे भी मिला है ??

हेम/23.03.2018
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