रविवार, 22 मार्च 2009

शिखर की अंतरिक्ष यात्रा :अंतिम भाग: कहानी :हेम चन्द्र जोशी

जब शिखर ने पूरी बात बताई तो रजत ने उस को बताया कि इस प्रकार के बाल पेन   यहां प्रयोग नहीं किए जा सकते इसलिए उन को उपहार के रूप् में बांटने से कोई फायदा नहीं है. शिखर ने आश्चर्यचकित हो कर कहा- "क्यों ये पेन अंतरिक्ष में काम  क्यों नहीं आ सकते है. मैं ने सभी पेनों से लिखने की कोशिश की पर इन में से किसी से भी मैं  लिख न पाया. समझ में नहीं आता है कि पेन से स्याही क्यों नहीं निकल रही है?" 

इस विषय में तो मै ने कभी  कुछ सोचा ही नहीं पर हम लोग यहां विशेष प्रकार की पेंसिल से लिखते है. यह कहते  हुए रजत ने उसे एक पेंसिल ला कर दे दी. पेंसिल को देख कर  शिखर मुसकरा  उठा. घर मे उसे पेन से लिखने से सदा रोक  दिया जा था. सभी कहते थे कि उस की हस्तलिपि खराब हो जाएगी. स्कूल में भी पेन को प्रयोग मना था. उस ने अंतरिक्ष से अपना पत्र पेन से लिखने की ठानी थी.  पर यहां भी सब  कुछ गड.बड. हो गया था. पत्र लिखने के लिए उसे एक बार फिर पेंसिल मिल गई थी.  पर उसे  समझ में  नहीं आ रहा था कि जब पेंसिल से अंतरिक्ष में लिख जा सकता है तो उसका पेन यहां काम क्यों नहीं कर रहा है? 

तभी मामाजी आ गये. शिखर ने तुरंत अपनी समस्या उनके सामने रख दी. मामाजी एक बार फिर हंस पडे. उन्होने कहा कि क्या वह कुछ ही दिनों  मे सब बाते जान लेगा चाहता  है? इस विषय में वे कभी आराम से बात करेगे.

शिखर ने मचल कर कहा- "नहीं मामाजी अभी बताइए न."  

अच्छा रजत तुम यह बताओ कि यदि धरती पर हम पेन से ऐसे लिखें कि नोक वाला सिरा उपर की ओर रहें जैसे कि कागज को दीवार से सटा कर उस पर लिखने का प्रयत्न किया जाए तब क्या होगा?

"कुछ नहीं मामाजी थोडी ही देर में पेन लिखना बंद कर देगा. यदि हम पेन की नोक को नीचे की ओर कर दे तो वह फिर लिखने लगेगा पर ऐसा क्यों होता है यह मुझे पता नहीं."- रजत ने उत्तर दिया.

मामाजी ने मुस्करा कर कहा स्याही अपने भार के कारण नीचे की ओर बहती है. इसलिए वह नोक से तभी निकल पाती है जब नोक की दिशा नीचे की ओर हो. 
"मैं समझ गया मामाजी मेरे सभी पेने अंतरिक्ष में क्यों गडबडा गए है?" शिखर ने उतावलेपनसे आगे कहा- "अंतरिक्ष मं स्याही का अपना भार तो है नहीं. इसलिए पेन से वह नहीं बहती है" 

मामाजी ने खुश हो कर जोर से  शिखर की पीठ ठोंक दी तो वह खिलखिला कर बोला- "यहां तो हर बात में कोई न कोई चक्कर है."

मामाजी  के जाने के बाद शिखर ने रजत द्वारा दी हुई  पेंसिल से पत्र लिखने की ठानी. उसे लगा कि अपनी रोमांचक यात्रा के चक्कर में वह घर के बारे में बिलकुल ही भूल गया  गया है. उस ने घडी देखी  शाम के साढे   5 बज रहे थे. उस ने सोचा कि यदि वह घर पर होता तो इस समय मां उस को शाम का नाश्ता दे रही होतीं और उस का प्यारा कुत्ता ब्रूनो उस के पांवों लोट रहा होता. वह चाहे कितना भी ब्रूनों को भागाने की चेष्टा  करता पर वह उस के पांवों से न हटता. अंत में हार कर डबलरोटी या  बिस्कुट का एक टुकडा उस को जरूर देना ही पड.ता.  पिताजी अकसर उस से नाराज  होते थे. वह कहते थे कि खाते समय कुत्ते को नहीं छूना चाहिए इस से बीमारी होने की संभावना रहती है

जब भी वह घर से बाहर निकलता हो ब्रूनो  भी चलने की जिद करता. उस के सभी दोस्त भी ब्रूनो को भी साथ ले जाते.  फिर खेले के बीच बीच में ब्रूनो  आ कर उन की गेंद  मुहं से पकड लेता. सच, उसे ब्रूनो  व अपने दोस्तों की बहुत याद  आने लगी. शाम को खेलते खेलते यदि देर जो जाती  तो मां नाराज होतीं और  कहतीं शिखर अच्छे  बच्चे सदा सूरज डूबने से पहले घर चले आते हैं.

उसे याद आया कि उसे सूरज को धीरे धीर आसमान में डूबता देखे हुए कई दिन  हो गए हें. उदास हो कर उस ने पेंसिल को कागज में चलाना शुरू  किया और लिखाः

प्यारी मां,

सादर चरण स्पर्श

मुझेस आप सब कि बहुत याद आ रहीं है. पिछले  कई दिनों से मै  इस आश्चर्यजनक  विक्रम साराभाई  अंतरिक्ष नगर में खो  सा गया हूं.   मैं मिलने पर यहां  की ढेर सारी घटनाएं  आप को बताउंगा . इन बातो को पत्र में लिखना संभब नहीं है.

पर मां, यहां न तो यहां सुबह होती है आर न शाम.   न तो पूर्व से सूर्य उगता नजर आता है है और ना ही पश्चिम से डूबता हुआ. सब कुछ दिशाहीन और स्थिर है. न पूर्व है न पश्चिम, न उत्तर है न दक्षिण. हर समय चमकता हुआ सूरज  है और चारों और दोपहर का वातावरण, सब कुछ यांत्रिक सा है. सुबह उठने पर न तो आसमान में सूरज की लालिमा दिखाई देती है और न ही चिडि.यों की चहचहाहट. आसमान में बादल भी नहीं है. रंगबिरंगी पतंगे भी नहीं  उड.तीं. ना कही मुर्गे की बांग की आवाज सुनाई देती है और न हीं ठंडी  हवा के झोंके. सब कुद चमकदार होते हुए भी  बेजान सा है 

सच मां, सब कुछ निर्जीव सा है. जब पेड ही नहीं है  तो फिर पक्षियों के घोंसले कहां से आएंगें? जमीन पर फैली न तो हरी हरी घास है और न ही रंगबिरंगे फूल. न ही रंगबिरंगी तितलियों हैं. कुछ भी  हिलताडुलता भी नहीं, हिलेगा भी कैसे  जब कि हवा के झोंके ही नहीं है. एक मजेदार बात है यहां कपडे. भी गंदे नहीं होते क्योंकि न कहीं धूल है और न ही कालाकाला धुआं है.

सारा का सारा अंतरिक्ष  नगर इतना ज्यादा साफासुथरा है कि मैं वर्णन भी नहीं कर सकता पर समझ में नहीं आता कि मुझे अच्छा क्यों नहीं लग रहा है लिखने को तो ढेर सारी बातें है पर बाकी मिलने पर बताउंगा।

आप का बेटा,

शिखर ने पत्र पूरा ही किया था कि मामाजी घर पहुंच गए उन्होंने उस से कहा  कि वे अगले दिन किसी काम से पृथ्वी पर जा रहे हैं. वह चाहे तो वापस घर चल सकता है।
मामाजी की बात सुन कर शिखर की उदासी दूर हो गई उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस ने फटाफ़ट चलने की तैयारी करनी शुरू  कर दी. मामी ने उस से कुछ और दिन रूकने को कहा, पर शिखर न माना वह अगले ही पल अपने ्घर पहुंचना चाहता था.

मामाजी ने कहा शिखर तुम सामान कम ही रखना अन्यथा पृथ्वी  पर पहंुच पहुंचते सूटकेस इतना भारी हो जाएगा कि तुम उठा भी न पाओंगे.
शिखर ने सहमति  में सिर हिला दिया दुसरे दिन वह मामाजी के साथ सकुशल पृथ्वी पर पहुंच गया. अंतरिक्ष स्टे्शन पर उस ने अपनी अटैची उठाने की कोशिश की पर उससे टस से मस भी न कर सका. मामाजी ने मुस्करा कर कहा- "बेटा मैं ने कहा था न कि कम सामान रखना. यहां आ कर अटैची का भार बहुत बढ. गया है इसलिए इस उठाना अब संभव नहीं है मैं अभी कुली बुला कर लाता हूं.
अपनी भारीभ्ररकम अटैची ले कर वह ्जब घर पहुंचा तो उस की मां घर के बाहर खडी थीं. शिखर को एकाएक आया देख कर उन्होंने उस को गले लगा कर ढेर सारा प्यार किया.

मामाजी व उस की मां को लगा कि शिखर अपनी कुछ ही दिनों की यात्रा के दौरान बहुत ही समझदार हा गया है. वह अपने दोस्तों से कह रहा था, अंतरिक्ष नगर में न तो इतना ढेर सा पानी है कि हम जितना चाहें बहा सकें और न इतना खाना कि थालियों में छोड. सकें. अंतरिक्ष नगर में पता चलता है कि पानी हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण हैं.

वहीं मुझे अनुभव हुआ कि हमारी धरती कितरी सुंदर और सरल है. तरह तरह के रसीले फल, रंगबिरंगे फूल, तितलियां, भौरे, जानवर नीले आकाश में उड.ते पक्षी.... सभी प्रकृति की अद्भुत कृतियां है. आकाश में ढेर सारे ग्रह, उपग्रह व तारे दूर से चमक के कारण सभी बहुत सुंदर  दिखाई देते है. पर कोई भी इतना प्यारा नहीं जितना हमारी प्यारी धरती .....

शिखर की बातों को सुन कर उस की मां मन ही मन मुसकरा दीं।........................

रविवार, 15 मार्च 2009

शिखर की अंतरिक्ष यात्रा भाग-५ :कहानी: हेम चन्द्र जोशी

एक पल  में जब सब  ने आंखें खोली तो देखा एडवर्ड अपनी जगह पर न था. वह तेज गति से पीछे की ओर उड.ता हुआ अंतरिक्ष में चला जा रहा था शिखर झटके के साथ दौड.ता हुआ मामाजी के पास पहुंचा. उनको को मुसकराता  देख कर उस की जान में जान आई.

लिफ़्ट से उतरते ही शिखर ने मामाजी स प्रश्न किया,"एडवर्ड पिस्तौल के धमाके के साथ अंतरिक्ष में कहां और कैसे उड.ता चला गया?"

"बेटा अच्छा तुम बताओ.... यदि एक गुब्बारे में हवा भरी जाए और फिर उस के सिरे को बिना बांधे छोड. दिया जाए तो क्या होगा?"

शिखर ने कहा, "मामाजी गुब्बारे की हवा तेजी से पीछे को निकलने लगती है और गुब्बारा तेजी से आगे की ओर भागता है,"

मामाजी खुश हो कर बोले "बस कुछ ऐसा ही एडवर्ड के साथ भी हुआ है जितनी ताकत से गोली पिस्तौल से आगे को निकली उतनी ही ताकत से एडवर्ड को पीछे की ओर धक्का भी लगा है. इसीलिए वह अंतरिक्ष में उड.ता चला गया...." 

शिखर  ने बीच में ही बात काट कर कहा, "किंतु धरती पर तो ऐसा नहीं होता है"

"यह तो वही पुराना चक्कर है बेटे,  अंतरिक्ष में हमारा भार समाप्त हो जाता है, जिसे हम भारहीनता कहते है. इसीलिए पिस्तौल का धक्का हम को आराम से अंतरिक्ष में धकेल सकता है."

"तो क्या एडवर्ड अंतरिक्ष में भूखाप्यासा मर कर यों ही उड.ता रहेगा?" शिखर ने आश्चर्य से पूछा. 

"हां यदि उस को हमारे खोजी अंतरिक्ष यानों ने ढूंढ न निकाला..." थोडा रूक कर वह बोले, "किंतु  एडवर्ड को जीवित पकडना अति आवश्यक है ताकि जासूसों के गिरोह का भंडाफोड. हो सके, इसलिए कर्नल उस की खोज में खोजी यानों को अवश्य भेजेंगे."

बदमाश एडवर्ड की वजह से खेल आधे में ही समाप्त  हो गए सभी लोग बोर हो कर चले गए. सभी की जबान पर एक ही चर्चा थी कि एडवर्ड अंतरिक्ष नगर में क्यों आया था? सारी सुरक्षा व्यवस्था को चौकस कर दिया गया. खोजी दस्तों की सहायता से किसी तोड.फोड. की आशंका से बचने के लिए खोंजबीन शुरू कर दी गई. 

थोडी देर में वे घर पहुंच गए. मामी ने उन को जल्दी आया देख कर आश्चर्य  प्रकट किया. काफी देर तक एडवर्ड के बारे में बातचीत होती रही. तथी मामी को कोई बात एकाएक याद आ गई और वह मामाजी से बोलीं, "सुनिए, कल ग्रहण लगने वाला है. आप जब खेलकूद देखने गऐ थे, तब टीवी में यह सूचना प्रसारित हुई थी."

"तो मैं क्या करूं?" मामाजी ने कहा  
मामी बोलीं, "मैं आप से इसलिए कह रहीं हू  ताकि आप आवश्यक प्रकाश की व्यवस्था कर दें, क्योंकि ग्रहण करीब 2 घंटे तक रहेगा  पूरे अंतरिक्ष नगर में घटाटोप  अंधियारा छाने की सूचना हैं"

शिखर ने आश्चर्य से मामी से पूछा, "क्या यहां भी सूर्यग्रहण लगता है?"
तब मामाजी ने शिखर से पूछा कि क्या उस ने सूर्यग्रहण के बारे  में पढ.  रखा है. शिखर के सहमति में सिर हिलाने पर उन्होंने पूछा "बताओ पृथ्वी पर सूर्यग्रहण कब दिखाई देता है?" 

"मामाजी, जब पृथ्वी  और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो हमें सूर्यग्रहण  दिखई देता है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा मार्ग में ही रोक लेता है. पर आप यह पूछ क्यों रहे है?" 

मामाजी ने हंस कर कि वह कल उस को अंतरिक्ष नगर की छत पर ले जाएंगे और दिखाएंगे  कि ग्रहण कैसे लगता है. लेकिन यहां का सूर्यग्रहण पृथ्वी के सूर्यग्रहण  से अलग है. चंद्रमा की जगह कल हमारे अंतरिक्ष नगर और सूर्य के बीच में कोई दूसरा अंतरिक्ष नगर आने वाला है, जिस के कारण ग्रहण लगेगा.

"वह कैसे?" शिखर ने आश्चर्य से पूछा.

"कल जब तुम इस घटना को अपनी आंखों से देखोगे तो तुम्हें  सब समझ में आ जाएगा."

इस के बाद मामाजी घर में प्रकाश की व्यवस्था  करने में जुट गए. उन्होंने  घर की सभी इमरजेसी लाइटों की जांच की ताकि दूसरे दिन किसी प्रकार की परेशानी न हो. 

दूसरे दिन ग्रहण से काफी पहले मामाजी घर आए और शिखर को ले कर अंतरिक्ष नगर की छत पर पहुंच  गए. कल जहां खेलकूद हो रहे थे उसी स्थान से कुछ दूरी  पर एक छोटी सी वेधशाला थी. मामाजी ने वहां के किसी कर्मचारी से बात की. कर्मचारी उन को एक टेलीस्कोप के पास ले गया और उस ने शिखर से टैलीस्कोप में देखने को कहा.

 शिखर ने किसी गोलाकार वस्तु को अंतरिक्ष में घूमता  हुआ  पाया. कर्मचारी  ने बताया कि वह एक अन्य अंतरिक्ष नगर को देख रहा है, जो धीरे धीरे सूर्य और उनके अंतरिक्ष नगर के बीच में आ रहा है यह अंतरिक्ष नगर जैसे ही बीच में आना शुरू होगा, वैसे ही हमें सूर्यग्रहण दिखाई देना शुरू हो जाएगा क्योंकि यह मार्ग में ही सूर्य  के प्रकाश को रोक लेगा.

थोडी देर में कर्मचारी ने कहा कि वह अब आगे की घटना परदे पर देखें. टेलीस्केप से सूर्य को देखना संभव नहीं है, क्योंकि सूर्य के तेज प्रकाश से हमारी आंखें खराब हो जाएंगी.

शिखर ने एक विशेष परदे पर देखा, जिस में सूर्य  का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था. धीरे धीरे  वह अंतरिक्ष नगर बीच में आने लगा और इस की वजह से सूर्य  का एक किनारा कटा हुआ दिखाई देने लगा. फिर धीरे धीरे पूरा सूर्य ही ढक गया अंतरिक्ष नगर में पूर्ण अंधेरा छा गया शिखर ने पहली बार अंतरिक्ष नगर में रात होती देखी.

तब एक कर्मचारी ने शिखर से कहा कि वह थोडी देर के लिए ग्रहण लगाने वाले अंतरिक्ष नगर को देख सकता है. शिखर ने विशेष टेलीस्कोप से देखा. अंतरिक्ष नगर धंुधला सा दिखाई दे रहा था. उस के किनारे गोल थाली के किनारों की भांति चमक रहें थे. सचमुच यह एक अद्भुत दृश्य था. 
तब मामाजी  ने अंधेरे में शिखर का हाथ पकड. कर कहा, "क्यों अब घर चला जाए? आज  तो अंतरिक्ष नगर में भी रात हो गई तुम ने यहां का अनोखा ग्रहण भी देखा लिया है."

अनोखें ग्रहण को देख कर शिखर बहुत उत्साहित था. उस ने थोडा आराम किया.  फिर उसे एकाएक याद आया कि उसे अपनी मां को एक पत्र जरूर लिख देना चाहिए. उस ने अपनी अटैची खोली. कागज और पेन  निकालते समय  उसे याद आया कि वह धरती से अपने साथ ढेर सारे पेन ले कर आया था  वह लौटते समय अंतरिक्ष नगर के अपने नए दोस्तों  को    एक-एक पेन भेंट करना चाहता था.  शिखर ने लगे हाथों आने अंतरिक्ष नगर के मित्रों की एक सूची बनाने की भी सोची. 

शिखर ने पत्र में लिखी जाने वाली चीजों के बारे में कुछ देर सोचा और फिर लिखना शुरू  किया.

प्यारी मां....

 पर कागज में लिखावट न उभरी. शायद  पेन की रिफिल खराब थी. उस ने अटैची से एक दूसरा पेन निकाला और फिर लिखना शुरू किया पर फिर वही बात. पेन कागज पर नहींं चला  उसे लगा कि कागज के पन्ने में कुछ खराबी है उस ने एक नए पन्ने में लिखने की कोशिश  की पर पेन से कुछ न लिखा जा सका

उस ने पेन को काफी देर तक कागज पर घिसा ताकि स्याही आनी शुरू  हो आए पर नतीजा जीरों रहा. तब उस ने अटैची में रखे सभी पेनों से लिखने की कॊशिश की पर नतीजा कुछ भी न निकला आखिर सारे के सारे पेनों को क्या हो गया. "क्या दुकानदार ने उसे खराब पेन पकडा दिए थे." शिखर के मन में विचार आया. शिखर ने एक पेन की रिफल को बाहर निकाला और उस के पीछे से फूक मारी. तभी रजत वहां आ गया. मेज पर रखे ढेर सारे पेनों को देख कर वह चौक गया. उस ने शिखर  से पूछा  कि वह इतने ढेर सारे पेन ले कर क्यों आया है?

जब शिखर ने पूरी बात बताई तो रजत ने उस को बताया कि इस प्रकार के बाल पेन यहां प्रयोग नहीं किए जा सकते. इसलिए उनको उपहार के रूप् में बांटने से कोई फायदा नहीं है. शिखर ने आश्चर्यचकित हो कर कहा- "क्यों ये पेन अंतरिक्ष में काम  क्यों नहीं आ सकते है? मैं ने सभी पेनों से लिखने की कॊशिश   की पर इन में से किसी से भी मैं  लिख न पाया समझ में नहीं आता है कि पेन से स्याही क्यों नहीं निकल रही है?" 



बुधवार, 4 मार्च 2009

शिखर की अंतरिक्ष यात्रा भाग-५: कहानी: हेम चन्द्र जोशी



शिखर की अंतरिक्ष यात्रा भाग-५: कहानी: हेम चन्द्र जोशी

शिखर ने रैकेट और शटल काक हाथ में पकड. कर चारों ओर देखा. मामाजी उस को अपनी ओर बुला रहे थे. वह दौड. कर उनके पास पहुंच गया. उस ने देखा कि मामाजी भी कुछ परेशान है. उस ने हेडफोन द्वारा मामाजी से पूछा कि क्या बात हो गई है?  


मामाजी ने चुप रहने को कहा और फिर सामने की ओर इशारा कर दिया. 

शिखर ने देखा कि एक व्यक्ति काला अंतरिक्ष सूट पहने उसी ओर भागा चला आ रहा हैं. उसे के पीछे एक लंबा सा आदमी चला आ रहा था. शिखर को लगा कि इस लंबे आदमी को उस ने पहले भी कहीं देखा है. तभी एकाएक उस को याद आ गया कि वह कर्नल कृपाल हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष यान स्टेशन पर हार्ट अटैक के मरीज का इलाज किया था. तभी शिखर के अंतरिक्ष सूट के अंदर लगे हेडफोन पर कर्नल कृपाल की रोबदार आवाज गूंजी, ”मि. एडवर्ड तुम पकडे. गये हो. अपने आप को मेरे हवाले कर दो... इसी में तुम्हारी भलाई है.“

पर एडवर्ड ने कोई उत्तर न दिया और वह भागता भागता बैडमिंटन कोर्ट के पास पहुंच गया. शिखर डर से कांप गया. उस ने देखा कि गोरे अंग्ररेज एडवर्ड के हाथॊ मे पिस्तौल है. वह बार बार गुस्से से पिस्तौल को लहरा रहा था. शिखर को लगा कि अब दुर्घटना घटे बिना नही रहेगी. पता नहीं यह बदमाश क्या अनर्थ कर डाले. उसे कर्नल कृपाल की भी चिंता हो उठी. शिखर ने हेडफोन में चीख कर कहा, ”कर्नल साहब, बदमाश के हाथो मे पिस्तौल है. आप सावधान रहिएगा. कहीं यह आप पर हमला न कर दे“
 उधर कर्नल ने एडवर्ड को फिर चेतावनी दी कि वह चारों ओर से घेरा जा चुका है. उस के बचने का अब कोई रास्ता नहीं है. अतः उसे आत्मसमर्पण कर देना चाहिए.

पर एडवर्ड  ने कर्नल की बातों पर कोई  ध्यान न दिया. 

शिखर को हेडफोन पर एडवर्ड के गुर्राने की आवाज आई. वह क्रोध से बोला, ”तुम ज्यादा चतुर बनने की कोशिश मत करों. यदि तुमने मेरे पास आने की कोशिश की तो मैं तुम को गोली मार दू‘गा.  ध्यान रहें यदि मैं ने अंतरिक्ष  नगर की छत में गोली से छेद कर दिया तो शीशो के बीच में उंचे दबाव में भरी गैस बाहर निकल जाएगी...फिर तुम अंतरिक्ष नगर को बचा नहीं पायोगे.“

एकाएक कर्नन की चाल धीमी पड. गई. उनको रूकता  हुआ देख कर एडवर्ड हंस पडा और बोला, ”तुम समझदार व्यक्ति लग रहे हो. अब मेरे लिए एक अंतरिक्ष यान का इंतजाम करो ताकि मैं यहां से सुरक्षित भाग सकूं. इस काम के लिए मैं तुम को 2 घंटे का समय देता हू‘, केवल 2 घंटे का,“ उस ने धमकी भरे शब्दो‘ में कहा.

तब तक शिखर और मामाजी भी भाग कर कर्नल के पास पहुच गए. कर्नल साहब ने बताया, ”एडवर्ड एक खतरनाक अपराधी है. इस ने महत्वपूर्ण सूचनाएं विदेशो को भेजी है. यदि यह पकडा गया तो हमारे हाथो ढेर सारे जासूस पकडें. जाएंगे. यह व्यक्ति भी हमारी अंतरिक्ष यान में पृथ्वी से साथ साथ आया  था. किंतु मैं इस को पहचान नहीं पाया क्योंकि इस ने अपनी दाढी और मूछे बढा ली हैं. पर कल मैं ने इसे गुप्त सूचनाएं एकत्र करते देखा तो याद आ गया कि यह वही एडवर्ड है, जिसे घायल अवस्था में सैनिक अस्पताल में लाया गया था. पर यह किसी प्रकार वहां से भाग निकला क्योंकि तब तक इस के बारे में जानकारी प्राप्त न हो पाई थी,“

”इस खतरनाक अपराधी को पकड.ने में मैं आप की सहायता कैसे करू?“ मामाजी ने कर्नल से पूछा.

कर्नल साहब बोले, ”यह बडा खतरनाक अपराधी है. यदि इस ने वास्तव में अंतरिक्ष नगर के शीशो  में गोली चला दी तो बडा अनर्थ हो सकता है, ”फिर वह एक धीमी सी आह भरते हुए बोले, ”काश मैं ने बुलेटप्रूफ जैकेट पहनी होती.“ 

कर्नल साहब की बात सुन कर मामाजी  चॊक उठे. उन्होंने कर्नल से कहा, ”मेरा स्पेस (अंतरिक्ष) सूट विशेष  प्रकार से बना है. इस को पहन कर हम अंतरिक्ष में विभिन्न कार्य करते हैं. अतः किसी दुर्घटना की संभावना से बचने के लिए इस को बुलेटप्रूफ जैकेट की भाति ही मजबूत बनाया गया है. आप चिंता न करें. आप इसे बातों में उलझाइए, मैं इस पर पीछे से हमला करूंगा.“ 

मामाजी दबे पांव धीरे धीरे खिसक लिए. शिखर सांस रोक कर देखता रहा कि किस प्रकार वह एडवर्ड के पीछे जा पहुंचे. पर ने जाने कैसे एडवर्ड को शक हो गया वह एकाएक पीछे को घूम गया. मामाजी को अपनी ओर बढता देख कर उस ने आपा खो दिया. एक जोरदार रोशनी दिखाई दी. शिखर ने घबरा कर आंखें बंद कर ली और घबराई आवाज में जोर से चिल्लाया, ”मामाजी, आप ठीक हैं न........?“

एडवर्ड ने मामाजी के उपर गोली चला दी थी रोशनी पिस्तौल से ही निकली थी.