ये कविता मैं अपनी बहन डॉ दीपा धवन के वाल से चुरा रहा हूँ जो उन्होंने लिखी है। इसके भाव मुझे इतने अच्छे लगे कि मैं इसमें बिना अधिकार कुछ जोड़ गया हूँ। क्षमा के साथ प्रस्तुत है
"रिश्तों का सच"
कुछ रिश्ते बेनाम होते हैं
जी चाहता है कुछ नाम रख लूँ
क्या पता किसी ख़ास घड़ी में
पुकारने की जरूरत पड़ जाए
जब नाम वाले
सभी रिश्ते नाउम्मीद कर दें
और बस यह एक नाम
आखिरी उम्मीद बन जाये
कुछ रिश्ते बेकाम होते हैं
जी चाहता है
काम तमाम कर दूँ
और उनकी परछाइयों को
यादों के आकाश सेधुंए सा उड़ा दूँ
जो धीरे-धीरे उड़ कर
अंधेरों में गुल हो जायें
बोझिल से ये रिश्ते
ज़िंदगी को ओर बोझिल न कर
जिंदगी से अदृश्य हो जायें
कुछ रिश्ते बेशर्त होते हैं
बिना किसी अपेक्षा केप्रस्फुटित होते हैं
जी चाहता है अपने जीवन की सारी शर्तें
उन पर निछावर कर दूँ
जब तक जिऊँ
बेशर्त इन्हें निभाऊँ
जीवन के हर पल
इनको ही गाऊँ
कुछ रिश्ते बासी होते हैं
गर्म करने परसूखे व कड़कड़े हो जाते हैं
नष्ट हो जाते हैं
या फिर खोलने पर
बास भर जाते हैं
जी चाहता है
इस बन्द थैली को
अतीत के कूड़ेदान में फेंक दूँ
ताकि मन का वातावरण
दूषित होने से बच जाए
कुछ रिश्ते बेकार होते हैं
जैसे दीमक लगे दरवाज़े
जो भीतर से खोखलेपर बाहर साबूत से दिखते हैं
जी चाहता है
दरवाज़े उखाड़ करआग में जला दूँ
और उनकी जगह शीशे के दरवाजे लगा दूँ
ताकि जो भी जिंदगी में आये
आर पार दिख जाये
न फिर दरवाजा टूटेना
दीमक लग पाये
कुछ रिश्ते शहर से होते हैं
जिसमें अनचाहे भी ठहरे होते हैं
कहाँ-कहाँ से आते हैं
फिर न जाने कहाँ चले जाते हैं
इनका अपना रास्ता है
क्षण भर को ही सही हमारा इनसे वास्ता है
कुछ चाहने से पहलेचले जाते हैं
एक नया अनुभव दे जाते हैं
कुछ रिश्ते बर्फ से होते हैं
आजीवन जमे रहते हैं
जी चाहता है
इस बर्फ की पहाड़ी पर चढ़ जाऊँ
और अनवरत एक मोमबत्ती जलाए रक्खूँ
ताकि धीरे-धीरे सही
ज़रा-ज़रा-से बर्फ पिघलती रहे
फिर देख सकूँ
अंदर क्या छिपा रखा है
कुछ रिश्ते अजनबी होते हैं
हर पहचान से परे
कोई अपनापन नहीं
कोई संवेदना नहीं
जी चाहता है
शायद कुछ भी नहीं चाहता है
इनके लियेक्यों जियूँ व क्यों मरूँ
कुछ रिश्ते खूबसूरत होते हैं
इतने कि खुद की भी नज़र लग जाती है
जी चाहता है इनको काला टीका लगा दूँ
लाल मिर्च से नज़र उतार दूँ
न जाने कब कहाँ किसकीनज़र लग जाये
इन्हेंजी चाहता है पलकों मेंछिपा लूँ
इनकोकुछ रिश्ते बेशकीमती होते हैं
सुराहीदार गर्दन में सजेगहने से
नाजुक व खिलखिलाते हुए
खूबसूरत और अनमोल
जिन्हें खरीदा नहीं जा सकता
जी चाहता है इनको छिपा कर रखूँ
ताकि देखने वालों की ईर्ष्या से बचूँ
कुछ रिश्ते आग से होते हैं
कभी दहकते
कभी धधकते हैं
अपनी ही आग में जलते हैं
दूसरों को भी जलाते हैं
जी चाहता है पानी की बूंदें बरसा दूँ
न उसको जलने दूँ
न ख़ुद को जला दूँ
कुछ रिश्ते चाँद होते हैं
कभी अमावस
कभी पूर्णिमा
कभी अन्धेरा
कभी उजाला
जी चाहता है
चाँदनी अपने पल्लू में बाँध लूँ
और चाँद को दीवार पे टाँग दूँ
ताकि कभी अमावस का
अंधेरानहीं आ पाये रिश्तों में
कुछ रिश्ते फूल से होते हैं
खिले-खिले सुगंधित रहते बारह मास
जी चाहता है
इनके सभी काँटों को चुन चुन कर चुरा लूँ
ताकि कभी कोई चुभन ही न हो
ज़िंदगी हरदम सुगन्धित रहे
कोमल व खिली-खिली
कुछ रिश्ते ज़िंदगी होते हैं
खूबसूरत जीवन की तरह
बदन में साँस बनकर
रगों में लहू बनकर
अनवरत बहते रहते हैं
जी चाहता है हर पल चुरा लूँ इनका
और ज़िंदगी चलती रहे यूँ ही
रिश्ते फूल, तितली, जुगनू, काँटे
रिश्ते चाँद, तारे, सूरज, बादल
रिश्ते खट्टे, मीठे, नमकीन, तीखे
रिश्ते लाल, पीले, गुलाबी, सफ़ेद, स्याह
रिश्ते कोमल, कठोर, लचीले, नुकीले
रिश्ते दया, माया, प्रेम, घृणा, सुख, दुःख,
रिश्ते आग, धुआँ, हवा, पानी
रिश्ते गीत, संगीत, मौन, चुप्पी, शून्य, कोलाहल
रिश्ते स्वर्ग रिश्ते नरक
रिश्ते बोझ, रिश्ते सरल
रिश्ते मासूम,
रिश्ते ज़हीनरिश्ते फरेब,
रिश्ते जलीलरिश्ते जीवन,
रिश्ते सपनेउपमाओं बिम्बों से सजे
संवेदनाओं से घिरे
रिश्ते रिश्ते होते हैं
जैसे समझोरिश्ते वैसे होते हैं