शुक्रवार, 23 मार्च 2018

अद्भुत अँधेरे

माँ लौटा दे मुझको
अंधेरे से वे पल 
नाभि से जुड़ा 
जब तेरी शय्या पर पड़ा था
धक धक 
वो धक धक 
तेरी दिल की धड़कनों का
मैं ने न जाने कितना 
अद्भुत संगीत सुना था 
खन खन वो खन खन
चूड़ियों की वो खन खन
हँसी का वो अमृत
न जाने वो मैंने कब कब पिया था 
माँ लौटा दे मेरे 
अँधरे से वो पल !! 
सूनसान था
छाया था अँधेरा
ये कैसी थी दुनिया
ये कैसा था डेरा
न डर था कहीं भी
न कोई था संकट
कहाँ कब पता था
तू भूखी थी सोयी
नहीं ये भी पता था
तू खुश थी या रोयी
मुझे तो तेरा स्पर्श मिला था
तेरे छूने पर मैं इतरा के हिला था !!
माँ लौटा दे मेरे
अँधेरे से वो पल
जब ममता में तेरी
मैं पल पल जिया था !
कहाँ से मैं आया 
कैसे मैं आया 
कब ये मिला था 
मुझे यह स्पंदन 
कैसे बना मैं
माटी से चंदन
सुनी थी कब तू ने 
मेरे दिल की पहली धड़कन 
छुआ था कब मुझको
जब मैं पहली बार हिला था 
मारी थी कुलांचें 
बताने को तुझको 
प्रकट हो गया हूँ 
जताने को तुझको
कोई लौटा दे मेरे
वे सुनहरे अँधेरे
जिसमें नहीं थे
साँझ और सवेरे !!
है कैसी पहेली
है कैसी ये दुनिया
शुरू में अँधेरा
अन्त में भी तो अँधेरा !!
अँधेरे से अँधेरे का
अजब सिलसिला है
पर कभी क्या कोई
उससे भी मिला है ??

हेम/23.03.2018
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