मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

फर्क

बात बात में
फर्क होता है
एक बात से दर्द
कहीं बात का 
मलहम सा होता है
कोई हाल चाल
जब कभी पूछता है
एक में समाचार जानने की उत्सुकता
दूसरे में किसी का ख्याल होता है ।
इसीलिए कहता हूँ 
बात बात में
फर्क होता है।
कहीं झूठी स्वागत की हँसी
कहीं जबान पर दिखावटी सा दर्द
पर हर कोई क्या कभी
अपना हमदर्द होता है ?
कोशिश करो
महसूस तो करो
तभी तो एक हाथ गरमजोशी से भरा
और एक हाथ सर्द होता है !
तभी तो बात बात में
फर्क होता है।
वैसे ही
जैसे हँसी हँसी में फर्क होता है
एक हंसी में आमंत्रण
एक में तिरस्कार होता है
एक हँसी से आनन्द
एक से फसाद होता है
एक हँसी से
महफ़िल खिलखिला जाती है
दूसरी हँसी
न जाने कितनों रुलाती है!
इसीलिए बात बात में
फर्क होता है।

हेम/19.12.207

रविवार, 10 दिसंबर 2017

मुस्कान


मुस्कान

क्या मैं थका हूँ
या फिर परेशान हूँ  
पल पल मैं देता
क्या इम्तिहान हूँ ?
कभी इस से 
कभी फिर उससे
या फिर सभी से भी 
नसीहतें लेता हूँ
जो 
जो भी देता है 
वह समेट लेता हूँ
कान से सुनकर
हाथ में लपेट लेता हूँ
काम का तो जेब में
बेकाम जमीन को भेंट देता हूँ
दूसरे के झूठ को भी
धीरे से समेट लेता हूँ
पर झूठे को कभी
झूठा नहीं कहता हूँ
बेवकूफ सा बन कर
बस मुस्कुरा देता हूँ
अपनी मुस्कराहट का 
मन ही मन मजा लेता हूँ
न जहर पीता हूँ
न उड़ेलता हूँ
नीलकंठ तो हूँ नहीं
पर कुछ कुछ झेल लेता हूँ
बुराइयों के बीच भी
अच्छाईयों से खेल लेता हूँ।

हेम/10.12.2017