फर्क
फर्क होता है
एक बात से दर्द
कहीं बात का
मलहम सा होता है
कोई हाल चाल
जब कभी पूछता है
एक में समाचार जानने की उत्सुकता
दूसरे में किसी का ख्याल होता है ।
इसीलिए कहता हूँ
बात बात में
फर्क होता है।
कहीं झूठी स्वागत की हँसी
कहीं जबान पर दिखावटी सा दर्द
पर हर कोई क्या कभी
अपना हमदर्द होता है ?
कोशिश करो
महसूस तो करो
तभी तो एक हाथ गरमजोशी से भरा
और एक हाथ सर्द होता है !
तभी तो बात बात में
फर्क होता है।
वैसे ही
जैसे हँसी हँसी में फर्क होता है
एक हंसी में आमंत्रण
एक में तिरस्कार होता है
एक हँसी से आनन्द
एक से फसाद होता है
एक हँसी से
महफ़िल खिलखिला जाती है
दूसरी हँसी
न जाने कितनों रुलाती है!
इसीलिए बात बात में
फर्क होता है।
हेम/19.12.207