रविवार, 5 अप्रैल 2009

शाबाश मोतीचूर: कहानी: हेम चन्द्र जोशी


SUNDAY, 5 APRIL 2009



शाबाश मोतीचूर
बहुत पहले की बात है। जंगल के छोर पर एक बरगद का वृक्ष था। जिसमेंकबूतरों का झुण्ड रहता था। उनके नेता का नाम शान्तिप्रिय था। वहबुद्विमान  दूरदर्शी कबूतर था। उसके नेतृत्व में सारे कबूतर ऊँची-ऊँचीउड़ाने भरते और मीलों की यात्रा करने के बाद भी थकते नहीं थे। सभी कबूतरमेहनत से दाना चुगतेपानी पीते  आकाश में स्वछंद विचरते थे।

इस दल में एक मोतीचूर नामक युवा कबूतर भी था। वह बड़ा पराक्रमी बलशाली था। एक दिन वह उड़ता-उड़ता राजप्रसाद में जा पहॅुंचा। यहां परराजा ने अपने नन्हें युवराज के लिए ढेर सारे कबूतर पाल रखे थे। ढेर सारेदाने  कबूतरों के झुण्ड को देखकर वह लालायित हो उठा। उसने एक लम्बीउड़ान भरी और अपने नेता शान्तिप्रिय के पास जाकर उसे राजमहल के बारेमें बताया।

स्थान देखकर शान्तिप्रिय के मन में विचार आया-‘स्थान सुन्दर सुरक्षित है।दाना-पानी की व्यवस्था भी अच्छी हैकिन्तु इतनी सुविधाएं उपभोग करनेसे हमारी आने वाली सन्तानें अयोग्य हो जाएगी। वे मात्रा  पालतू कदूतर वनकर रह जायेंगे। इसलिए उसने इस राज प्रासाद में रहने के विचार को उचितनहीं समझा। सब कवूतर मान गये पर मोतीचूर अनमना हो गया। मोतीचूरअक्सर राज प्रासाद की मीनारों पर जा बैठता। वह टुकर-टुकर नीचे बैठेकबूतरों  उनके खाने-पीने को निहारा करता।

जब शान्तिप्रिय को पता चला तो उसने मोतीचूर से कहा- ‘मोतीचूरतुमहमारे दल के उपनेता हो। राजमहल में रहने का लालच तुम्हारे विवेक परहावी हो रहा है इसलिए तुम वहाॅं मत जाया करो। तुम्हारा आचरण दल केअन्य पक्षियों के लिए हितकारी नहीं है।‘ लेकिन मोतीचूर राजप्रासद के मोहको त्याग  सका। वह महल की छत से आंगन में घूमते कबूतरों और प्रचुरमात्रा में उपलब्ध दाने को लालच से देखा करता। राज प्रासाद के कबूतरों केनेता का नाम आश्रित था। एक दिन मौका देखकर वह स्वयं मोतीचूर के पासउड ़कर आया और बोला, ‘हे सफेद कमल से सुकोमलहंस की भांति सुन्दरकबूतरतुम किस प्रयोजन से प्रतिदिन राज प्रासाद की मुंडेर पर बैठते हो,अगर तुम चाहो तो हमारे दल में शामिल हो सकते हो।‘ वह मोतीचूर केमनोभावों का पढ़ना चाहता था।

आश्रित के निमंत्राण को पाकर मोतीचूर खुश हो गया। अब जब उसके दल केकबूतर ऊँची ऊँची उड़ाने भरने का प्रयास करते और दाना पानी खोजते तबमोतीचूर चुपके से राज प्रसाद में पहुंच जाता। वह दिन भर वहीं दाना पानीचुंगता और कभी कभी पिंजरे के अंदर भी चला जाता। पर शाम होने के पूर्वही वह अपने दल में जा मिलता।

समय बीतता गया मोतीचूर ने लंबी उड़ाने भरनी छोड़ दीं। वह आराम तलबहो गया। और पिंजरे मंे ही रहने लगा। उसे आकाश की ऊंचाईयों से डरलगने लगा। मोतीचूर को दल में  पाकर उसकी खोज की गयी। ढूंढते ढूंढतेउसके मां बाप भाई बहन  मित्रा उसे समझाने आये और बोले हे मोतीचूरतुम महान पराक्रमी  बहादुर कबूतर हो। तुम हमारे दल के उप नेता हो।आने वाले समय में तुम्हें हमारा नेतृत्व करना है। तुम्हारे इस प्रकार पिंजरेमें सजावट की वस्तु की तरह रहना शोभा नहीं देता। तुमने क्या सोच कर येमार्ग सुना है ? समझदारी से काम लो और हमारे साथ चलो। पर जब मोतीचूरनहीं माना तो वे हताश होकर वापस चले गये। समय बीतता गया।राजकुमार बड़ा हो गया। कबूतरों से उसका दिल भर गया। उसने राजा सेबोलने वाले तोतों की फरमाईश की।अब राजकुमार के लिए ढेर सारे तोतेलाये गये। कबूतरों  को हटाकर महल के एक माली को सौंप करके लकड़ी केघरों में रख दिया गया। अब  तो उनको ठीक से दाना पानी मिलता और ही उनकी देखभाल होती। सभी कबूतर दुखी थे। किन्तु वे स्वतंत्रा जीवननिर्वाह करने  उड़ने का साहस नहीं कर सके।

फिर एक दिन माली ने कबूतरों की देखरेख से तंग आकर उनको एक बहेलियेको बेच दिया। बहेलिया शहर की हाट में बैठकर कबूतरों को बेचने लगा।

मोतीचूर को एक कुम्हार खरीद कर ले गया। बहेलिये ने महीन धागे सेमोतीचूर के उड़ने वाले पर बांध दिये थे। कुम्हार का नन्हा सा बेटा मोतीचूरको बहुत प्यार करता। उधर मोतीचूर अपनी पिछली जिंदगी को याद करकरके आहत होता जब वह उंचे आसमान में उड़ते पक्षियों को देखता तोउसकी आंखे नम हो जातीं।

एक दिन मोतीचूर का धागा टूट गया। उसने अपने पंख फड़फड़ाये। उसकीटांगे जमीन से उठ पड़ी।वह थोड़ी सी उंचाई पर जा बैठा। किन्तु उंचाई से नीचेदेखने पर उसे भय लगने लगा। वह  उड़ने की हिम्मत कर सका ओर  हीउतरने की। उसकी टांगे  शरीर कांपने सा लगा। कुम्हार ने उठाकर उसकोफिर उसके काबुक में डाल दिया।

सौभाग्य से एक दिन मोतीचूर के पुराने साथी कुम्हार की झोंपड़ी के पासआये। उन्हांेने मोतीचूर को वहां बैठे देखा। सभी साथियों ने खुशी से आवाजदी - ‘मोतीचूरमोतीचूर

मोतीचूर ने उपर देखा। उसके साथी उसको बुला रहे थे। उसके नेत्रों से आंसुओंकी धारा बहने लगी। उसने रूंधे गले से कहा - ‘मित्रोंा तुम इतने समय सेकहां थे ? आओनीचे आओ। बात करेंगे। कबूतरों ने कहा, ‘मोतीचूर नीचे हमेंखतरा है। तुम उड़कर हमारे पास  जाओ।

मोतीचूर का शरीर कांपने लगा पर वह उड़  सका। उसने रोते हुये कहादोस्तो मैं उड़ना भूल गया हूं। मेरे परों में अब उड़ने की शक्ति नहीं रही।

उसके मित्रोंा को बहुत आश्चर्य हुआ। वे अपने नेता शान्तिप्रिय को बुलाकरलाये। शान्तिप्रिय उतर कर भूमि पर आया। उसने अपनी चोंच से मोतीचूरको ढेर सारा प्यार किया और कहा ‘मोतीचूर तुम मेरे पुत्रा के समान हो।निराशा ने तुम्हारे पराक्रम को कुंठित कर दिया। तुम आज भी उतने हीबलशाली  पराक्रमी हो। आओमेरे साथ उड़ो।

पर मोतीचूर नहीं माना। उसने कातरता से कहा, ’हे स्वामीमैंने आपकी बातनहीं मानी। इसीलिए मेरी यह हालत हुयी है। आप मुझे इसी हाल में छोड़जायें। मुझे अब कोई आशा नहीं है। यह कह कर मोतीचूर जोर जोर से रोनेलगा।

तब तक शान्तिप्रिय ने दल के अन्य कबूतरों को धीरे से समझा दिया था।मोतीचूर को दिलासा देते हुये बातों बातों में शान्तिप्रिय उसे कुम्हार कीझोंपड़ी के उपर ले आया। वहां पहुंचकर उसने यकायक मोतीचूर को धक्का देदिया। मोतीचूर घबरा कर नीचे गिरा और डर के मारे उसने डैने चलाने शुरूकर दिये ताकि वह भूमि पर उतर सके। किन्तु शान्तिप्रिय की योजना केअनुसार ढेर सारे कबूतरों ने मोतीचूर के नीचे कबूतरों की एक चादर सी बनादी। सभी कबूतर धीरे धीरे उपर उड़ते गये। मजबूरन मोतीचूर को उपर उड़नापड़ा।

काफी उंचाई पर पहुंचने के बाद सभी कबूतर उड़ कर एक ओर हट गये।मोतीचूर ने देखा कि वह काफी उपर उड़ रहा है। नीचे छोटे छोटे पेड़  खेतदिखाई दे रहे थे। मोतीचूर घबरा गया। उसका गला डर से सूख गया। घबराहटमें उसके डैने धीमे पड़ गये। वह लड़खड़ाने लगा। उसका सिर घूमने लगा।

मोतीचूर जैसे ही नीचे गिरने लगा उसे शान्तिदूत की आवाज सुनाई दी, ’मोतीचूर मोतीचूर। घबराओ नहीं तुम वही बहादुर और पराक्रमी मोतीचूरहो। हमारे दल के उपनेता। संभलो और अपने डैने चलाओ। तुम मृतकों केसमान ही जीवन जी रहे हो। इसलिए मृत्यु से मत डरो और जीवन के लिएडैने चलाओ। मोतीचूर डैने चलाओ-डैने चलाओ।

मोतीचूर की चेतना शान्तिदूत की चिल्लाहट से वापस लौटी। उसने डैनेचलाने शुरू कर दिये और पल भर में ही वह उपर और उपर उड़ने लगा। उसनेमस्ती में कलाबाजियां खानी शुरू कर दीं। नीचे से उसके मित्रा चीख रहे थे, ’शाबाश मोतीचूरशाबाश तुम जीत गये मोतीचूर तुम जीत गये।


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