★★भाषा ★★
क्या करूँ
अपनी ही भाषा बोलता हूँ।
सबकी बातें
एक ही तराज़ू में
तौलता हूँ ?
नहीं कर पाता हूँ
कहीं भी काट छाँट
सच के लिये
क्यों रखता हूँ
एक सा ही बाँट ?
ऐसे कहीं
जिंदगी चलती है ?
दूसरे की भाषा भी तो
यहाँ समझनी पड़ती है !
यह जिंदगी है
जनाब !
वक्त व स्थान के हिसाब से
यहाँ भाषा
पल पल बदलती है
अपनी ही भाषा का
अनचाहा मोह
अच्छा नहीं है यहाँ
नफे नुकसान को
समझे बिना
सच बोलना
अच्छा है कहाँ ?
समझदार हो
समझ लो जरा
रोम में रोमन बोले बिना
सफलता मिलती है कहाँ ?😎😎
पर ये लोग हैं
हर हाल ही में
बोलते ही रहते हैं
खराब ही रहता हूँ
तब भी
क्या करूँ
जब चेहरों को
देख कर मैं यहाँ बोलता हूँ !!🙁🙁
हेम/ 08.04.2018
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