रविवार, 4 जनवरी 2009

शिखर कि अंतरिक्ष यात्रा भाग-2 STORY BY: Hem Chandra Joshi




शिखर कि अंतरिक्ष यात्रा भाग-2 


कब रात होगी 

उन की आवाज सुन कर मामी भी घर से बाहर आ गई.शिखर ने उनके पैर छुए ही थे कि रजत ने आवाज लगाई, ”शिखर, छत पर आ जाओ. “ ”पर कहां से ? मुझे तो सीढियां दिखाई नहीं दे रहीं . 
”उछल कर छत पर आ जाओ. तुम आराम से यहां पहुंच जाओगे , “ कनी ने मुसकरा कर कहा. ”उछल कर ?“ शिखर ने आश्चर्य से पूछा पृथ्वी के मुकाबले मकान की छत की ऊंचाई काफी कम थी पर इतनी कम भी न थी कि वह उस ऊंचाई तक उछल सकता. रजत समझ गया कि शिखर आ’चर्यचकित है. इस लिए वह बोला कि वह कूद कर नीचे आ रहा है. तभी शिखर घबरा कर बोला ”देखिए मामाजी, रजत छत से नीचे कूद रहा है.“ अभी वह बात पूरी भी न कर पाया था कि रजत कूद कर उस के पास आ गया और फिर एकाएक दोबारा उछल कर छत पर जा पहुंचा. तब रजत बोला, ”शिखर. तुम यहा काफी ऊची छलांग लगा सकते हो आओ, तुम भी आराम से छत पर पहुंच जाओगे“ शिखर समझ गया. उस का भार अंतरिक्ष में कम हों गया था, जब कि उसकी ताकत उतनी ही थी. पृथ्वी में वह छोटे पत्थर को बडे पत्थर के मुकाबले ज्यादा दूर फेंक सकता था. वह यहां पृथ्वी के मुकाबले में ज्यादा ऊचाई या दूरी तक कूद सकता है. अंतरिक्ष नगर में खाना खाने के बाद शिखर बहुत देर तक मामा - मामी, रजत व कनी से बातें करता रहा. फिर रजत और कनी सोने चले गए. शिखर को लगा कि वह भी थक गया है. धूप तब भी पूरी तेजी से पड. रही थी. उस ने मामा से पूछा, ”रात कब होगी? मैं तो बहुत थक गया हूँ “ मामाजी खिलखिला कर हंस पडे वह घडी  को देखते हुए बोले ”इस समय रात के 12 बज रहे है़,“ फिर वह उसे मकान के तहखाने में बने कमरों में ले गए. शिखर ने पाया कि वहां ठीक रात जैसा वातावरण हो रहा है. और तो और फ़र्श में लगी खिड.की  से दूर आसमान में तारे चमकते दिख रहे थे. आश्चर्य, ऊपर तेज धूप थी और नीचे घनघोर अंधेरे में चमकते हुए तारे. उसे आश्चर्यचकित देख कर मामाजी बोले, ”अंतरिक्ष नगर के ऊपरी हिस्से का मुंह सदा सूरज की ओर रहता है. इसीलिए वहां पर सदा दोपहर रहती है. यह अंतरिक्ष नगर का पिछवाड.ा है. इस ओर सूरज का प्रकाश न पहुँचने से यहां हरदम अंधेरा रहता है. इसलिए अंतरिक्ष नगर में हर पल रात है और हर पल दिन है. “ मामाजी की बात सुन कर शिखर हैरान रह गया उसे समझ में आ गया कि अंतरिक्ष नगर की सड.कों में प्रकाश व्यवस्था क्यों नहीं है जब पूरे अंतरिक्ष नगर में कभी रात होती ही नहीं है तो फिर सड.कों पर ट्यूब लाइट या बल्ब लगाने की जरूरत ही कहां है? शिखर मन ही मन मुसकरा उठा,

कैंचियों से मत डराओ तुम हमें
हम परों से नहीं होसलों से उड़ा करते हैं
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