एक नम्बर
कहानी : अनीता जोशी
हाईस्कूल में जब मैं कालेज में प्रथम आया तो एकाएक मैं सब की नजर मे आ गया। मेरा आत्म विश्वास बढ.ने के साथ एक और चीज में भी बढ़ोत्तरी हो गयी । वह था मेरा घमण्ड। अब मैं अपने को कुछ अलग सा समझने लगा था। यह एकाएक कैसे हो गया मुझे पता ही नहीं हुआ। ग्यारहवीं कक्षा में पहुँचने पर सब कुछ बदल सा गया था। कक्षा के बदलने के साथ ही हमारे टीचर भी बदल गये। उन्होंने हमको इससे पहले नहीं पढ़ाया था। किताबें भी काफी मोटी हो गयी थी और विषय काफी कठिन।
पहले ही दिन टीचरों ने कक्षा में हम लोगों के नाम पूछने के साथ-साथ हाईस्कूल में प्राप्त अंको के बारे में भी पूछा। मैंने सभी को बड़े ही गर्व से बताया। मेरे हाव भाव पर किसी ने गौर किया कि नहीं, मैं जान नहीं पाया। पर अंग्रेजी के टीचर राना सर ने शायद मेरी अदा को कुछ अन्यथा ही लिया। वह बोल पड़े,- “बेटा बहुत ही खुशी की बात है कि तुमने कालेज में टौप किया है पर कालेज में हाईस्कूल में बच्चे ही कितने थे ? मुश्किल से मात्र दो सौ । अब तुम्हारा मुकाबला उन लाखों बच्चों से होगा जो मेडिकल एवं इन्जीनियरिंग की परीक्षाओं में बैठेगें। तब पता चलेगा कि ऊँट कितने पानी में है।“
मुझे राना सर की बात कतई पसन्द नहीं आयी। मुझे लगा कि उनको मेरे अंको को देख कर शायद कुछ जलन सी हो गयी । पर क्यों ? मैं समझ नहीं पाया । मैने पाया कि उनका व्यवहार अन्य छात्रों के प्रति भी कुछ ऐसा ही था। वे बार बार आगाह कर रहे थे कि हाईस्कूल के अंको पर घमण्ड करने की कोई वजह नहीं है।
धीरे-धीरे ग्यारहवीं कक्षा को भी हम पास करे गये। पर राना सर के व्यवहार में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ । वे यदा कदा हम लोगों को धमकाते ही रहते थे। हम लोगों की भी अब उनसे डाँट खाने की आदत सी पड़ गयी।
12वीं कक्षा में पहुँचते-पहुँचते हम लोगों के कुछ पर से निकल आये। हम कुछ उद्दण्ड भी हो चले । कभी-कभी मौका निकाल कर हम स्कूल की दीवार फ़ाँद कर स्कूल से भाग भी जाया करते थे।
उस दिन फिजिक्स का प्रैक्टिकल था । मैं घर से पढ़ कर नहीं आया था। इसलिये मेरे लिये प्रैक्टिकल को समझ कर करना संभव नहीं था। अतः मैंने स्कूल से दीवार फ़ाँद कर भागने की सोच रखी थी। जैसे ही छठे पीरियड के समाप्त होने की घण्टी बजी, मैं चट से दीवार फ़ाँद कर बाहर कूदने को दौड़ा। अभी मैं दीवार पर आधा ही चढ़ा था कि किसी ने पीछे से मुझे नीचे खींच लिया । मैं ने मुड़ कर देखा तो पाया कि राना सर खडे़ थे। उन्होंने डाँटते हुये मुझसे पूछा “बेटा कहाँ भाग रहे थे? ” ।
मैं हक्का-बक्का रह गया। मेरे मुॅह से आवाज नहीं निकल रही थी कि क्या उत्तर दूँ। घबराहट में मैंं बोल पड़ा-” कहीं भी तो नहीं। मैं तो खाली ऐसे ही प्रैक्टिस कर रहा था।“
” तो फिर यह बस्ता तुम्हारे पीछे क्यों टॅगा है। क्या यह भी प्रैक्टिस कर रहा है तुम्हारे साथ । ” -राना सर ने घूर कर पूछा।
अब मैं निरुत्तर था। तब राना सर ने दोबारा पूछा- ”किस चीज की क्लास है अब तुम्हारी?“
“ जी, फिजिक्स का प्रैक्टिकल है। “मैंने सिर झुका कर कहा।
“पढ़ के नहीं आये थे प्रैक्टिकल ? इसीलिये भाग रहे हो क्या ?“ राना सर ने कहा-“आ जाओ, मेरे साथ चलो आफिस में।“
मैं समझ गया कि अब मेरी प्रिन्सिपल के सामने पेशी होने वाली है। मैं सिर झुकाये उनके पीछे चल दिया और मन ही मन सोचने लगा- “ इस राना के बच्चे को फिजिक्स की क्या समझ है जो नाहक मेरे पीछे पड़ा है।“
पर वह मुझे लेकर अपने आफिस पहुँच गये और बोले- “कौन सा प्रैक्टिकल था तुम्हारा आज? मुझे किताब खोल कर दिखाओ ।”
“आप को क्या समझ मैं आयेगा प्रैक्टिकल?“ -मैंने खीझ कर उनसे कहा।
राना सर मुस्करा दिये। मैंने भी बड़ी बेरूखी से किताब खोल कर उनकी ओर बढ़ा दी ।
राना सर ने पता नहीं सरसरी निगाह से क्या देखा और फिर उस प्रयोग से संबन्धित चार प्रश्नॊ में निशान लगा कर मेरी ओर बढ़ाते हुये कहा- “अब तुम बैठकर इस पाठ को पढ़ो और निशान लगाये चार प्रश्नॊ का मुझे उत्तर दो। इसके बाद मैं तुम्हें छोड़ दुँगा अन्यथा मैं तुम्हें प्रिन्सिपल के पास ले जाऊँगा। जानते हो यह पाठ बहुत महत्वपूर्ण है।“
मैंने मन ही मन राना सर को कोसा और सोचा- “अंग्रेजी का टीचर अब हमें फिजिक्स पढ़ायेगा। यही होना तो अब बाकी है।“ और फिर मन मसोस कर पाठ को पढ़ने लगा और बहुत देर तक पढ़ता रहा। जब तक सब समझ में नहीं आ गया। पढ़ने के बाद मैंने उनसे प्रश्न सुन लेने के लिये कहा।
तब राना सर ने कहा- “ अब समय हो गया है किसी और दिन सुनुँगा। पर बताओ तुमको सब याद हो गया कि नहीं ?“।
मैंने सहमति से सिर हिलाया और मन ही मन कहा- “बच्चू, तुम क्या समझोगे फिजिक्स के प्रश्न-उत्तर।“
समय बीतता गया और राना सर यदा-कदा मुझे उस घटना की याद दिलाते हुये कहते रहते थे कि एक दिन वे प्र’न-उत्तर जरूर सुनेंगे। मैं सहमति से हामी भरते हुये मन ही मन कहता- “ सर, यह अंग्रेजी का पाठ थोड़ी है जो समझ लेंगे। यह तो फिजिक्स है फिजिक्स।“
फिर इण्टरमीडियेट बोर्ड की परीक्षायें हुयीं और मैंने पाया कि उसमें तीन नम्बर का सवाल उसी पाठ से आया था जो राना सर ने मुझसे जबरदस्ती पढ.वाया था। इससे ज्यादा आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब मैंने पाया कि प्री-इन्जीनियरिंग की परीक्षा में भी एक छोटा सा सवाल उसी पाठ से आया था जिसे मैं आसानी से कर गया।
इण्टरमीडियेट का रिजल्ट आया और मैं अच्छे नम्बरों से पास हो गया । प्री-इन्जीनियरिंग की परीक्षा में भी मैं पास हो गया। जब मैं एडमिशन हेतु इन्जीनियरिंग की काउन्सिलिंग में गया तो मेरा एडमिशन कम्प्यूटर साइन्स में हो गया और वह भी एक अच्छे कालेज में। काउन्सिलिंग में बैठ एक प्रोफेसर ने मुझसे कहा- “बेटे तुम बहुत भाग्यशाली हो। यदि तुम्हारा एक नम्बर भी फिजिक्स में कम होता तो तुमको यह ब्रान्च नहीं मिलती । यह आखिरी सीट थी।”
मैंने उनको धन्यवाद कहा और एकाएक मुझे राना सर की याद आ गयी । काउन्सिलिंग से वापस लौटने के अगले दिन मैं सीधे अपने स्कूल पहुँचा और मैंनें राना सर के पैर छूते हुये सारी बातें बताई और कहा- ” सर आज मुझे आपके कारण अपनी मन पसन्द ब्रान्च मिल पायी है। पर सर आपको कैसे मालूम चला कि वह पाठ इतना महत्वपूर्ण है?“।
राना सर जोर से हॅस पडे.। फिर अपनी बचपन की बात को याद करते हुये कुछ रुऑसे हो कर बोले-”बेटे, मैं ने भी इण्टरमीडियेट तक साइन्स पढ़ी है। इन्जीनियरिंग परीक्षा में एक नम्बर कम आने से मेरा एडमिशन नहीं हो पाया और मैं इन्जीनियर नहीं बन सका। जानते हो मेरी परीक्षा में इसी पाठ से पॉच नम्बर का सवाल आया था पर मैं ठीक से पढा न होने के कारण गलती कर गया था।“ मैंने देखा कि उनकी आँखें कुछ नम हो गयी थीं। उन्हें आज भी अपने समय से पढाई न करने की वजह से हुयी चूक से हुयी अपूर्णीय क्षति के लिये दिल के किसी कौने में गहरी टीस थी।
Hindi Story : एक नंबर
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