पार्वती बाई
एक दिन मैंने मम्मी को पापा से बातें करते हुये सुना । मम्मी कह रही थीं- ‘‘अतुल आजकल बड़ा हो रहा है। उस पर ध्यान देने की आवश्कता है। आप कुछ समय अतुल को भी दिया करें।“
पापा ने धीरे से हामी भरी और बोले- ”क्या करूँ। चाहते हुये भी बच्चों के साथ समय नहीं बिता पाता हूँ। कोशिश करूँगा।“
फिर बात आयी-गयी हो गयी क्यों कि पापा के पास तो आफिस के कामों से ही फुर्सत नहीं थी। अक्सर उनको टूर में जाना पड़ता था। फिर वे आफिस से आते भी काफी देरी से थे। ऐसे में पापा से बहुत ज्यादा बातचीत करना संभव ही न था। पर एक दिन पापा ने मुझको बुलाया और पूछा- ”अतुल आजकल तुम्हारी पढाई कैसी चल रही है? घर में तो तुम ज्यादा पढ़ाई करते दिखते नहीं हो।“
”ठीक चल रही है पापा । आप तो टीचर-पेरेन्टस मीटिंग में कालेज आते नहीं । नहीं तो आप मेरी टैस्ट की कापियाँ खुद देख लेते। “ -मैंने कहा।
”यह बात तो सही है।“- पापा ने हामी भरते हुये पूछा-”फिर भी कैसे हुये तुम्हारे टैस्ट । तुमने तो कुछ बताया ही नहीं।“
”बहुत अच्छे हुये पापा। टीचर कर रही थी कि यह लड़का इस बार कक्षा मे प्रथम आ सकता है। सभी बच्चों ने ऐसा ही काम करना चाहिये।“- मैंने उत्तर दिया।
”गुड, वेरी गुड।“ - पापा ने मुस्कराते हुये कहा और पूछा-”दोस्तों के साथ कैसा चल रहा है?“
”बढि़या चल रहा है। अनुज आजकल खेलने नहीं आ रहा है। उसके दादाजी बीमार हैं। ज्यादातर बच्चे आने वाली परीक्षाओं को देखते हुये खेलने कम ही आ रहें हैं।“- मैंने उत्तर दिया।
”भाई तुम भी खेलना कम करों और दूसरों की तरह पढ़ाई में ज्यादा ध्यान दो।“-पापा ने कहा।
”पापा ये सभी लोग अपना काम समय पर नहीं किया करते हैं इसलिये अब आखिरी समय पर उछल-कूद मचा रहे हैं। मैं तो अपने कार्य नियमित रूप से करता हूँ । इसी लिये मेरे ऊपर परीक्षाओं का कोई दबाव नहीं है।“- मैंने कहा।
पापा ने मुझे बडे़ गौर से देखा और मेरे आत्मविश्वाश को देखते हुये उनके चेहरे पर एक चमक सी आ गयी । वे प्रसन्न थे।
मैंने मौका ठीक जान कर मन ही मन सोचा कि क्यों न अपने मन की बात पापा से कह दूँ । अतः मैंने कहा- ”पापा एक बात पूछूँ?“
”हाँ हाँ क्यों नहीं“-पापा ने कहा।
”क्या छोटों की बात को बड़ों ने ध्यान नहीं देना चाहियें ?“- मैंने कहा।
” क्यों क्या बात हुयी ?“- पापा ने चौंक कर पूछा।
”पापा मैंनें जाने कितने समय से घर में सब से कह रहा हूँ कि यह हमारी काम वाली बर्तन ठीक से साफ नहीं कर रही है पर कोई ध्यान ही नहीं देता । मुझे रोज कुछ न कुछ गन्दा मिलता है। कभी गिलास, कभी चम्मच तो कभी थाली। पर कोई पार्वती बाई से कोई कुछ कहता ही नहीं है और पार्वती बाई मेरे कहे पर सिर्फ हँस देतीं है । मेरी बात पर कोई ध्यान देती ही नहीं है।“- मैं एक साँस में पूरी की पूरी बात कह बैठा।
पापा कुछ नहीं बोले। तब मैंने फिर कहा- ”पापा आप काम वाली को बदल क्यों नहीं देते?“
”बेटे, पार्वती हमारे वहाँ तुम्हारे पैदा होने से पहले से काम कर रही है। उसको एकाएक तो हम ऐसे निकाल नहीं सकते। फिर भी मैं उससे बात करूँगा।“- पापा ने कहा।
”पापा आप उसको डाटियेगा जरूर।“-मैंने खुश होकर कहा।
”ठीक है।“ -कह कर पापा अन्दर चले गये।
दो चार दिन बीत गये। मुझे लगा कि पापा भूल गये होंगे। इसलिये मैंने मौंका देखकर पार्वती बाई के साफ किये वे बर्तन दिखाये जिन पर किसी पर साबुन लगा रह गया था या जो ठीक से साफ नहीं हुये थे। पापा ने मेरी बात को ध्यान से सुना और फिर रविवार के दिन पार्वती बाई को समझाते हुये कहा-”पार्वती, आजकल बर्तन ठीक से साफ नहीं हो रहे हैं। कभी-कभी तो इनमें साबुन लगा रह जा रहा है। आप थोड़ी ध्यान से सफाई किया करो।“
”जी साहब।“- पार्वती ने कहा और बोली- ”साहब छोटे भय्या भी शिकायत कर रहे थे। क्या करूँ साहब यह बुढ़ापे की वजह से सब गड़बड़ हो जाती है। मैं छोटे भय्या की शिकायत के बाद से ही काफी ध्यान दे रही हूँ।“
बात आयी और गयी । पार्वती बाई के बर्तनों में अब पहले से कम शिकायत थी। फिर भी यदा-कदा गड़बड़ हो ही जाती थी। जो मुझको परेशान करती थी। मुझे ऐसा लगने लगा कि घर वाले और पार्वती बाई भी मेरी बातों में कोई विशेष महत्व नहीं दे रहे हैं।
फिर छुटिटयों में मेरे बड़े भय्या आ गये। मैंने फिर अपना दुखड़ा उनके सामने रोया तो उन्होने मुझसे कहा-”अतुल, पार्वती बाई हमारे घर में सालों से काम कर रही है। इस बुढ़ापे में उनको काम से निकालना उचित नहीं है। मैं फिर भी कुछ न कुछ करता हूँ।“
फिर मैंने एक दिन देखा कि भय्या और पार्वती बाई बहुत देर तक आपस में बातें करते रहे और फिर बाई ने सहमति से दो तीन बार सिर हिला कर हाँ कहा। फिर अगले दिन शाम को जब मैं खेलकर लौटा तो मैंने पाया कि पार्वती बाई भाई साहब के स्कूटर से नीचे उतर रही थी।
तीन चार दिन बाद भाई साहब वापस लौट गये पर एक बात बड़ी विचित्र हुयी । भाई साहब के जाने के बाद से पार्वती बाई के बर्तनों में अब कोई कमी मैं नहीं पकड़ सका। बर्तन अब चकाचक साफ मिलते थे। मैं अब बाई के काम से प्रसन्न था। पर यह चमत्कार कैसे हो गया मैं समझ नहीं पाया।
एक सप्ताह बीता और फिर धीरे धीरे पन्द्रह दिन भी बीत गये पर अब पार्वती बाई के काम में कोई कमी नहीं थी। तब मेरे से रहा नहीं गया। मैंने बाई से कहा -” बाई मैंने कहा, पिताजी ने कहा, मम्मी ने कहा पर आपने बिलकुल ध्यान नहीं दिया। पर अब भय्या ने तुमसे ऐसा क्या कह दिया कि तुम ठीक से बर्तन साफ करने लगी हो।“
पार्वती बाई खिलखिला के हँस दी और काफी देर तक हँसती रहीं । मुझे समझ में नहीं आया कि इसमें हँसने की क्या बात थी। उनको इतनी हँसी आयी कि नाक से उनका चश्मा नीचे निकल सा पड़ा। जब पार्वती बाई ने चश्मा ऊपर को किया तो एकाएक मुझे याद आया कि पार्वती बाई तो चश्मा पहनती ही नहीं है। आज यह चश्मा एकाएक उनकी नाक में कहाँ से आ गया?
”बाई आप ने यह चश्मा लगाना कब से शुरू कर दिया?“- मैंने एकाएक पूछा।
“यह ही तो तुम्हारे भय्या का कमाल है।”- पार्वती बाई बोली-“भय्या, मुझे आंखो के डाक्टर के पास ले गये और मुझे यह चश्मा बनवा कर दे दिया। बस हो गया तुम्हारी समस्या का समाधान । मैं अब अच्छी तरह देख सकी हूँ अतः बर्तन गन्दे छूटने का तो अब कोई सवाल ही नहीं है।”
मैं ठगा सा रह गया। मैं जान गया कि भय्या कितने होशियार हैं कि उन्होंने एक ही क्षण में हम सब की समस्या का समाधान कर दिया। पर मैं अब भी फुर्सत के क्षणों में सोचता हूँ कि इस बात की अक्ल मुझे क्यों नहीं आयी?
हिंदी कहानी पार्वती बाई
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