रविवार, 21 सितंबर 2008

पापा क्यों रोये ?

कहानी-22

पापा क्यों रोये ?

पिछले कई महीने से मैं व विक्की, पापा से एक ही मांग किये जा रहे थे । उधर पापा थे कि सदा हामी भर देते थे और आश्वासन दे देते थे कि अगले महीने वेतन मिलते ही हमारी मांगों को जरूर पूरा करे देंगे। हमारी मांग भी छोटी-मोटी थीं । मुझे अपनी मित्रों की भांति स्केटिंग के लिए रौलर स्केट और विक्की को गाना सुनने केलिए एक सस्ता सा वाकमैन चाहिए था। हमारे विचार से 1000- रूपये में दोनों काम हो जाने थे। तो फिर पापा क्या हमको 500- 500 रूपये नहीं दे सकते थे ? यही बाते अक्सर हम दोनों भाईयों के बीच हुआ करती थी। मई के महीने में हम दोनों का रिजल्ट निकला। मैं और विक्की दोनों अपनी-अपनी कक्षाओं में प्रथम आऐ थे । हमारा विचार था कि पापा प्रथम आने की खुशी में हम दोनों को लम्बे समय से अपेक्षित उपहार देगें। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। पापा ने बाजार ले जाकर हमको एक छोटी सी दावत दी और हम वापस आ गए। रात को खाने के बाद मै और विक्की अपने कमरे में सोने के लिए पहुंचे । बिस्तर में लेटे-लेटे हम दोनों के बीच लम्बी बातचीत हुई। विक्की का विचार था कि पापा झूठे आश्वासन दे रहे हैं और वे वाक्मैन व रौलर स्केट खरीदने वाले नहीं हैं। पर मेरा विचार था कि पापा अपने काम की अधिकता के कारण अपना वायदा भूल गये है। फिर क्या किया जाये ? यही प्रश्न हम दोनों एक दूसरे से कर रहे थे। पर समाधान किसे के पास नहीं था। काफी विचार-विमर्श के बाद हम दोनों ने निणर्य लिया कि जून के महीने की पहली तारीख को हम पापा के सामने अपनी बात एक बार फिर रखेगें। हम दोनों का मानना था कि यदि जून में हमारी मांगें पूरी नही हो सकी तो फिर जुलाई में मांगों का पूरा होना सम्भव नहीं होगा। जुलाई में तो हमारी किताबें, फीस आदि का ढेर सारा खर्चा होने वाला था। प्रोग्राम के अनुसार जून की की पहली तारीख को जब पापा आफिस से वापस लौटे तो हम दोनों ने उन्हें घेर लिया। नाश्ता पानी के बाद मम्मी की अनुपस्थिति को मौका देखकर हमने पापा के सामने हमने अपनी फरियादें दोहरा दी। पापा अपनी कोई बात कह पाते इससे पहले विक्की ने कहा पापा अब कोई बहाना मत बनाइएगा। यदि नहीं खरीदना है तो मना कर दीजिएगा। इन्तजार करते-करते हम बोर हो गए है। उधर हमारे दोस्त हमको झूठा समझकर रोज चिढ़ाते है। पापा कुछ नहीं बोले और मुस्कुरा दिए। फिर बोले- ’तुम ठीक कह रहे हो। यदि इस महीने भी मैने तुम्हारा सामान नही खरीदा तो शायद मै अगले महीनों में भी तुम्हारा रोलर स्केट व वाक्मैन नही खरीद पाउँगा। जो होगा देखा जाऐगा। ये लो पांच-पांच सौ रूपये।’ पापा ने बटुए से नोट गिनते हुए कहा। हम दोनो की सर्तक निगाहे पापा की अगुलियों के बीच फिसलते हुए नोटों पर थी। रूपया मिलते ही हम दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और आँखों ही आँखों में अपनी सफलता के लिए एक-दूसरे के लिए बधाई दीं। योजना के अनुसार मम्मी के आने से पहले ही हमारा काम हो चुका था। पापा से रूपए लेकर हम दोनों अपने कामों में व्यस्त हो गए। होमवर्क करने के बाद हम सोने चले गए। बिस्तर में लेटे-लेटे मिक्की ने मुझसे प्रश्न किया भैया, पापा ने जो होगा देखा जाएगा क्यों कहा होगा ? मै उनकी बात समझ नही पाया। ’ अरे, यो ही कुछ सोच रहे होगें। चल अब सो जा।’ मैंने ऑंखें बन्द करते हुए उत्तर दिया। ’भय्या, जरा बाथरूम तक मेरे साथ चलिए, मुझे अकेले डर लग रहा है।’ मिक्की ने मुझसे अग्रह किया। हम दोनों कमरे से बाहर निकले। पापा के कमरे में हल्की रोशनी जली हुई थी। पापा, मम्मी से कह रहे थे। ’स्कूटर के दोनों टायर व ट्यूब खराब हो चुके है। कभी भी फट सकते हैं । सोचा था इस महीने बदलवा डालूँगा पर बच्चों की बात टाल नहीं सका। अब इस महीने बस से ओफिस चला जाऊंगा क्योंकि यदि चलते-चलते टायर फट गया तो एक्सीडेन्ट भी हो सकता है। अब ज्यादा रिस्क लेना ठीक नहीं है।’ हम दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और जानबूझ कर एक-दूसरे को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। मानों हमने कुछ सुना ही नहीं हो पता नहीं हम दोनों के मन में न जाने क्या अन्देशा था ? दूसरे दिन मिक्की वाक्मैन लेने चला गया और मै रौलर स्केट। पता नहीं कौन कब घर लौटा। हम दोनों को माना एक-दूसरे के घर वापस आने का पता ही नहीं चला। हम दोनों मिले पर मैने जानबूझ कर मिक्की से वाक्मैन के बारे में नहीं पूछा। पर मिक्की ने भी रौलर स्अेक देखने के लिए उतावलापन नहीं दिखाया। न जाने क्यूं ? यह प्रश्न मेरे मन में तब तक कौंधता रहा जब तक पापा नहीं आ गए और वह महत्वपूर्ण घटना नहीं घटी। बस से आने के कारण पापा आज देर से व थके हुए घर लौटें पर वे बहुत प्रफुल्लित थे। चाय पीते-पीते उन्होंने हम दोनों से अपनी-अपनी चीजें दिखाने के लिए कहा। एक बार हम दोनों की आँखें आपस में चार हुई। पर एक-दूसरे की आँखों में क्या था, हम समझ नहीं सके। अपने कमरे में जाने की बजाय मिक्की सीढि़यों के नीचे से कुछ लेकर आया और मैंने भी आलमारी के पीछे से अपना अखाबार में लपेटा पैकेट निकाला। हमारे पैकिटों को पापा बोले-’मिक्की का वाक्मैन और तुम्हारे रौलर-स्केट के पैकेट इतने बडे़-बडे़ ? उन्होंने आश्चर्य से पूछा। हम दोनों ने कोई उत्तर नहीं दिया। मै भी मिक्की के पैकेट को देखकर कुछ समझ नहीं पाया। ’ तुम दोनों इतने गुमसुम क्यों हो ?’ पापा ने मिक्की का पैकेट अपने हाथ में लेते हुए कहा। पापा ने मिक्की का पैकेट खोला तो मैं चोंक पड़ा . मिक्की के पैकेट के अन्दर और कुछ नहीं बल्कि पापा के स्कूटर का एक टायर व एक ट्यूब था। मैंने नम आंखों से भर्रायी आवाज से मिक्की से कहा-’ मिक्की तुमने बताया क्यों नहीं ? तुमने तो टायर खरीदा है।’ मिक्की बस मुस्कुरा भर दिया। पापा ने जब मेरे पैकेट को खोला तो उसमें भी एक टायर व एक ट्यूब ही था। ’तुमने भी तो शायद मिक्की को कुछ नहीं बताया, मेरे बेटें।’ पापा ने भर्रायी आवाज में मुझे देखते हुए कहा। ’पापा, मिक्की छोटा है न ! मैं नहीं चाहता था कि उसका दिल टूटे। मेरी इच्छा थी कि मिक्की अपना वाक्मैन जरूर खरीद ले।’ मैंने सुबकते हुए कहा। ’ आखिर भाई तो मैं आपका ही हूँ न भय्या।’ मिक्की ने मुस्कुराते हुए कहा- ’ मैं भी चाहता था कि आप रौलर-स्केट जरूर खरीद लें ।’ हम दोनों ने पापा व मम्मी की ओर देखा। दोनों की ऑंखें नम थी। दोनों अंगुलियों से अपने आंसू पोंछ रहें थे । ’ आप क्यों रो रहे है पापा ?’ हम दोनों ने एक साथ प्रश्न किया। पापा ने कोई उत्तर न देकर हम दोनों को अपनी बांहों में जकड़ लिया। ’पापा रो नहीं रहे है, बेटे। ये तो खुशी के आंसू है। पापा तो तुमको छोटा-सा बच्चा समझते हैं। वे कभी सोच भी नहीं पाए कि उनके नन्हे बेटे इतने समझदार व लायक है।’ मम्मी ने भी रूंधे गले से कहा। हम दोनों भाइयों ने खुशी से हाथ हवा में उठाकर एक-दूसरे से टकराए। फिर दोनों टायरों को जमीन में लुढ़काते हुए स्कूटर के उपर रख आए।