शनिवार, 11 अक्तूबर 2008



बाल उपन्यास
शिखर की अंतरिक्ष यात्रा



शिखर बहुत खुश था क्योंकि उसे अभी अभी अपने मामा जी का पत्र मिला था. उस के मामा अंतरिक्ष में स्थित भारत के विक्रम साराभाई नगर में वैज्ञानिक थे. पत्र इस प्रकार थाः

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष नगर,
दिनांक 22 नवंबर, 2025

प्रिय शिखर ,
सदा खुश रहो तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है. मुझे एक विशेष वैज्ञानिक योजना में काम करना है. जिसमें मैं बार-बार अंतरिक्ष नगर व पृथ्वी के बीच भ्रमण करूंगा. इस बीच यदि तुम चाहो तो 4-5 दिन के लिए मेरे साथ अंतरिक्ष नगर आ सकते हो. अपने माता पिता से पूछ कर चलने कि योजना बना लेना. यहाँ रजत और कनी तुमको बहुत याद करते हैं .

बहुत बहुत प्यार. शेष मिलने पर.



तुम्हारा,
छोटा मामा


शिखर अक्सर मामा जी के पास जाने की कल्पना करता था. उसकी बहुत इच्छा थी कि वह चन्दा मामा व प्यारी धरती को एक साथ निहार सके. उसने पुस्तकों में धरती के अनेक चित्र देखे थे. विज्ञान की किताबो में पढ़ा था कि पृथ्वी भी चंद्रमा की तरह गोल है. वह सोचता था कि अंतरिक्ष से अपनी धुरी पर घूमती हुई धरती कैसी दिखाई देती होगी ? शायद आकाश में लटके एक बडे ग्लोब की भांति , किसी लट्टू की तरह चक्कर काटती दिखई देती होगी ? वह सोच सोच कर रोमांचित हो उठता था.

इसीलिए वह मामाजी से मिलने पर सदा एक ही प्रश्न करता था, ”अंतरिक्ष से धरती कितनी तेजी से घूमती हुई दिखलाई देती है?“

तब मामा हंस कर कहते, ”’शिखर तू तो बिलकुल बुद्वू है. पृथ्वी कोई घूमती हुई थोड़ी दिखती है.... वह तो बिलकुल ऐसे ही दिखती है, जैसे कि चंद्रमा “

शिखर यह सुन कर सोच में पड़ जाता. उसे कुछ समझ में न आता था. मामा की यह बात उसे बार बार चक्कर में डाल देती थी. उसे कक्षा में बताया गया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर लट्टू की भांति घूमती है, जिस के कारण यहां रात और दिन होते हैं. पृथ्वी जरूर घूमती दिखाई देनी चाहिए. उस का विचार था कि मामा ने ध्यान से धरती को कभी देखा नहीं होगा. वह अचकचा कर पूछता, ”बिलकुल चन्द्रमा की तरह ? तो पहचान कैसे करूंगा?“

मामाजी हंस कर कहते, ”अब तुम को एक बार अंतरिक्ष में ले जाना ही पडे़गा. सच, धरती अंतरिक्ष से बहुत संुदर दिखती है. इस को तो अपने हरे रंग के कारण कोई भी पहचान सकाता है.“

अब मामाजी अपना वादा पूरा करने वाले थे. शिखर ने अंतरिक्ष नगर जाने की तैयारी जोर शोर से शुरू कर दी. एक अटैची में ढेर सारा सामान एकत्र करना शुरू कर दिया. शिखर के पिताजी ने उसे समझाया कि उसे कम से कम सामान ले कर जाना चाहिए. पर सामान कम रखते रखते भी उस की अटैची भारी हो गई, इतनी भारी कि उस के लिए उसे ले कर चलना मुश्किल हो गया. लेकिन उस के हिसाब से सभी सामान जरूरी था. उस ने घर में किसी की बात न सुनी.

मामाजी के आते ही उस ने शिकायत की. तब उन्होंने कहा, ”कोई चिंता की बात नहीं है. मेरे पास अपना कोई सामान नहीं है, इसलिए मैं सब कुछ संभाल लूँगा .“शिखरप्रसन्न हो उठा। उस को ख़ुशी थी कि वह रजत व कनी के लिए खरीदे हुए उपहार, यानी चाकलेट व खिलौने आसानी से ले जा पाएगा जो उसे इनाम में मिली थीं. आखिर किताबें दिखा कर उस ने मामी से भी तो शाबाशी लेनी थी.


चालू है