गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

अगली सुबह

दीपावली के अवसर पर एक बार यह कहानी फिर



अगली सुबह


मेरे घर की चहारदीवारी कुछ नीची है। इसीलिए सड़क में आने-जाने वालों को मैं आसानी से देख लेता हूँ । इस चलती सड़क पर न जाने कितने अपरिचित होते हुए भी जाने पहचाने से हो जाते है।
उन्ही में से एक वह लड़का भी था। मैला कुचैला सा। अपनी पीठ पर एक बड़ा झोला लिए वह अक्सर मुझे कुडे़ के ढेर में से चींजे बटोरते हुए दिखाई देता था। उसके चेहरे के पीछे कभी भी असंतोष नहीं दिखाई देता था । उसकी तेज चमकदार आंखें बड़ी सर्तकता के साथ सड़क पर पड़े कूडे. का निरीक्षण करते हुई बढ. जाती थी। एक यंत्र की भांति कार्य करते हुए लोहा, प्लास्टिक आदि के टुकडों को वह फुर्ती से समेटता पल भर में आगे बढ. जाता था। जाड़ों की ठिठुरन भरी सुबह को जब वह नंगे पांवों सड़क पर चलता हुआ मुझे दिखाई देता था तो पता नहीं क्यों सर्दी की सिरहन का ऐहसास मेरे मन में हो जाता था। उम्र में वह मुझसे चार-पांच वर्ष छोटा होगा। शायद दस-ग्यारह साल का ।उस साल दीपावली से पहले ठंडक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। मेरी जिद के कारण पिता जी ने दीपावली से पहले ही मेरे लिए दीपावली के पटाखें खरीदवा दिए। एक दिन तो मैं पटाखों की रंगबिरंगी पन्नीयों को देख कर खुश होता रहा। कल्पना में ही बम, फुलझड़ी व अनार चलाता रहा। पर दिल कब तक मानता ? आखिरकार मै जमींन पर पटक कर बजाने वाले कुछ ’ आलू बम’ लेकर बाहर आंगन मे आ ही निकला।
मै अभी दो-चार बम ही जमीन पर पटके थे कि उनके धमाकों की आवाज को सुनकर मेरे मकान की चहार दीवारी के निकट दो मैले कुचैले बच्चे आ खडे हुए। उनमें से छोटा वाला वही लड़का था जिसको मै अक्सर कचरा बीनते हुए देखता था। दोनों बड़ी ही हसरतों के साथ मेरे बमों को एक टक देखने लगे। जमीन में पटकने पर मेरे एक दो बम बिना आवाज करे ही एक ओर लुढ़क गऐ शायद वे खराब बम थें। जब मैं घर के अन्दर जाने लगा तो उनमें से छोटा वाला लड़का धीमी आवाज में बोला ’ बाबू जी, क्या मै गिरे हुए बम बीन लूँ ?’ मै ने लापरवाही से कहा कोई भी अच्छा बम गिरा हुआ नहीं है। पर वह नहीं माना। हार कर मैने उसको आज्ञा देदी। क्षण भर में वह हिरन की भांति कुलाचें मारता हुआ चहार दीवारी को फांद कर हमारे आंगन में आ पहुंचा और उसने उन बमों कों उठा लिया जो धामाका नहीं कर पाए थे। पता नहीं कितनी देर से वह टकटकी लगाए उन बमों पर निगाह गड.ाऐ हुए था। मैने हँस कर उससे कहा कि वह सब बेकार बम है। पर वह नहीं माना। उसने मेरे सामने ही एक बम को दीवार पर मारा जो एक धमाके के साथ गूंज उठा। उसकी आंखों में संतुष्टि से भरी एक अद्वितीय चमक बिखर उठी। बचे दो बमों को लेकर वह अगले ही पल दीवार कूद कर दूसरी ओर चला गया। शायद उसे शंका थी कि मै उन्हें वापस न ले लूं। मैने देखा कि उसने वह बम अपने साथी के हाथों में थमा दिये। अब उसके साथी के चेहरे पर भी चमक थीं। तीन बमों को पाकर कोई इतना खुश हो सकता है। यह मैं सोच भी नहीं सकता था। मै तो ढेर सारे पटाखों को पाकर भी संतुष्ट न था। मेरे पूछने पर पता चला कि वह उसका बड़ा भाई है। कुछ ही पलों में दोनों अपने थैलो को लिए मेरी आंखों से ओझल हो गए।
दीपावली आने को थी, पर घर की सफाई वाला पिछले कुछ दिनों से नहीं आ रहा था। सारा आंगन काफी गंदा हो गया था। एक सुबह पिता जी ने माँ से कहा ’ दिन में किसी से आंगन साफ करवाने की कोशिश करना। आँगन बहुत गंदा हो रहा है। ’
उसी दिन जब मै बम चला रहा था कि एक लड़का हमारी दीवार पर आ खडा हुआ। मेरे दिमाग में एक बात आई। मैने लडके से पूछा ’ क्या आंगन में से बम बीनने हैं ? ’
उसने खुशी से हामी भरी। मैंने उससे कहा कि वह सारे आंगन की झाडू. लगा कर सारा कूड़ा घरसे बाहर इकटठा कर ले और बमों को बीन ले। वह मेरी बातों से सहमत हो गया। मैने अन्दर से लाकर उसके हाथ में एक झाडू. थमा दी। वह काफी देर तक आंगन को साफ करता रहा और ढेर सारा कूड़ा घर के बाहर ले गया। फिर कुछ देर तक कूडे. में बमों को ढूढने के बाद उसने रूआंसी आंखों के साथ अपने सिर को उपर किया। उसके हाथ में एक भी बम नहीं था। उसने धीमीं आवाज में कहा ’ बाबू जी आज तो एक भी बम नहीं मिला। ’ उसके चेहरे को देखकर मुझे तरस आ गया। मैंने चार बम उसके हाथ मैं रख दिऐ। वह प्रसन्न हो उठा। मैने उससे कहा कि यदि वह दीपावली की रात को आयेगा तो मैं उसे कुछ और बम दूंगा । अगले ही पल वह कूदता फांदता चल पडा।
शाम को पिता जी आये । उन्होंने आंगन को साफ सुथरा देखकर घर में पूछ-ताछ की। मां को इस विषय में कुछ भी पता नहीं था। अतः मैने डरते-डरते सारी घटना पिता जी को बताई। मुझे डर था कि पिता जी इस बात से नाराज होगे कि मैने उस बच्चे को चार बम दे डाले है। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
पिता जी ने कहा ’ बेटा, हमको कम से कम दस रूपये इस काम के लिए देने पड़ते। तुमने तो मात्र दो रूपये के बमों में यह सब काम इतनी सफाई से करवा डाला है। अगर वह लड़का तुम्हे फिर दिखे तो तुम उसे कम से कम पांच रूपये के बम खरीद कर दे देना। वह बहुत खुश होगा।
’अगले दिन मै उसका इन्तजार करता रहा। फिर दीपावली की शाम भी आ गई पर वह लड़का मुझे नहीं दिखाई दिया।
मैने पिता जी से मांगकर दस रूपये के पटाखें खरीद कर उसके लिए रखे हुए थे। दीपावली की रात पटाखों के धमाके होते रहे, फुलझड़ी व अनारों की रोशनी होती रही। पर वह नहीं दिखायी दिया। मैने मन ही मन यह सोच लिया कि वह भी अपने घर दीपावली मना रहा होगा।
दीपावली की अगली सुबह मैं अपनी आदत के अनुसार सूरज उगने से पहले घुमने के लिए घर से बाहर निकला। मैंने देखा कि सुबह के अंधेरे में दूर से कोई चला आ रहा है।
पास पहुचने पर मैंने पाया कि वही लड़का कंधे में थैला लटकाये कूड़ा बीन रहा है। मैं सोच भी नही सकता था कि वह इतनी सुबह मुझे इस प्रकार मिल सकता है। अपने उन्हीं फटे पुराने कपडों में। जैसे कि दीपावली के त्यौहार का उसके लिए कोई महत्व ही नहीं रहा हो। हजारों रूपये की आतिंशबाजी व पटाखों का मलवा सड़क पर बिखरा हुआ था। पर उसके जीवन में कोई फर्क नहीं था। मैने उससे पूछा ’ कल दिन भर तुम कहाँ रहे ?मै देर रात तक तुम्हारा इंतजार करता रहा। कैसी रही तुम्हारी दीपावली ? कल रात को तुमने आतिशबाजी का खूब मजा लूटा होगा। ’
वह झिझक कर बोला ’ बाबू जी कल रात आप के दिये चार पटाखों से दीपावली मना ली थी। फिर मां ने जल्दी सुला दिया। मुझे आज सुबह काम पर जल्दी जो निकलना था। मालूम है मां हमको दीपावली की रात को सदा जल्दी सुला देती है ताकि हम सबसे पहले उठ कर ढेर सारा लोहा बीन सकें । आप बडे. लोग दीपावली की रात को ढेर सारी फुलझडिया जलाते हैं और मै अगले दिन उन सब फुलझडियों के तारों को इकट्रठा कर लेता हूँ । सच हमारा त्योहार तो आज होगा क्योंकि आज मैं और दिनों के मुकाबले ज्यादा सामान इकटठा कर पाउंगा।
मै उससे और अधिक बातें करना चाहता था। मैने उससे कहा कि वह मेरे साथ चलकर अपने पटाखे ले ले। पर वह तैयार नहीं हुआ। उसने शाम को आने का वायदा किया। जाते-जाते उसने कहा ’ बाबू जी दीपावली की सुबह साल में एक बार आती है। आज का समय बहुत कीमती है। देरी हो जाने पर कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।’ कहता हुआ वह आगे निकल गया।
मै ठगा सा सड़क पर खडा रह गया। सब लोग दीपावली की रात का इंतजार करते हैं। पर यहाँ मेरी आंखों से ओझल होता हुआ वह लड़का भी था जिसने दीपावली की अगली सुबह का इंतजार किया था।

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