गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

अन्तरिक्ष मे चोरी

कैंचियों से मत डराओ तुम हमें
हम परों से नहीं होसलों से उड़ा करते हैं
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कितना सच? कितना झूठ?? at:
http://pothi.com/pothi/node/79

4 टिप्‍पणियां:

bijnior district ने कहा…

हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे बढ़िया लिखे। हजारों शुभकामनांए।
कृपयर सैटिंग में जाकर वर्ड वैरिफिकेशन हटा दें । इससे टिप्पणी देने मे परेशानी होती है।

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Is kahani ke pichle ank bhi padhe. Bacchon ko rochak andaj mein aur vagyanik jankariyan pahunchane ka sarthak pryas hai aapka. Badhai.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

आपका चिटठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है अत्यन्त भावभीनी कविता
मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

Prakash Badal ने कहा…

वाह वाह वाह वाह वाह क्या बात है दो लाईने ही बहुत कुछ कह गई वाह