इतने साल बाद
कहानी : हेम चन्द्र जोशी
आज मैं बहुत खुश था। मेरे बेटे ने फौन पर मुझे सूचना दी थी कि अगले सप्ताह वे सब एक महीने की छुटटी में भारत वापस आ रहे हैं। सच, पिछली बार जब वे लोग ब्रिटेन गये थे तो मेरा पोता सचिन उनके गोद में गया था। फिर मैंने इन्टरनैट में वीडियों में बातें करते हुए उसको लड़खड़ाते हुये चलना सीखते देखा था। वैज्ञानिकों ने भी क्या चीज बना डाली । मीलों दूर होते हुये भी लोग ऐसे लगते हैं कि मानो सामने बैठ कर बातें कर रहे हों । न जाने कितने दिनों से सचिन को एक एक चीज सीखता हुआ मैं देख रहा था। सचिन ने तो अब चलने के साथ साथ खूब बोलना भी सीख लिया था। आखिर तब से चार साल बीत चुके थे।
जब सचिन इन्टरनैट में मुझसे बातें करता तो मैं मन ही मन सोचता था कि जब वह वास्तव में मेरे पास आयेगा तो हमको तुरन्त पहचान लेगा क्या ? या फिर हमको एक नयी शुरुवात करनी पडे़गी। खैर अब तो बहुत शीघ्र ही वे आने वाले थे। सब कुछ पता चल ही जाना था। ऐसा ही मन में विचार आ रहा था।
वास्तव में जब आदमी बूढ़ा हो जाता है तो उसके पास कोई काम धाम तो रह नहीं जाता है। और काम धाम नहीं रहता तो उसके पास बातें करने के लिये भी कोई नयी चीजें नहीं रहती है। इसी लिये वह पुरानी यादों को संजोये, उनके बारे में ही शायद अक्सर सोचा करता है। कम से कम मेरा तो कुछ ऐसा ही हाल है। मैं जब भी इन्टरनैट में बैठकर अपने बेटे को “औन-लाईन” न पाकर भी झीकता हूँ तो मेरी पत्नी अक्सर यही कहती है कि-”आपको तो कोई काम धाम है नहीं। अब आप सोचते हो कि सब अपना काम धाम छोड़कर इन्टरनैट में बैठ जायें । पर ऐसा हो नहीं सकता।“
मुझे कुछ कहते नहीं सूझता था और मैं बड़बडाते हुये कुछ और काम में लग जाता था। पर मेरा मन एकटक बच्चों की ओर ही लगा रहता था। ऐसे ही खाली क्षणों में जब एक दिन मै अकेला बैठा सोच रहा था तो एकाएक मुझे बचपन की यादें ताजा हो गयी। यह मन भी कैसा है। एक ही क्षण में यह बुढ़ापे से बचपन में पहुँच जाता है।
पापा कहते थे कि मेरे दादा जी बहुत अच्छे थे। पापा बताया करते थे कि दादा जी सदा अपनी कक्षा में प्रथम आया करते थे। यदाकदा पापा जब पिताजी की एक पुरानी डिक्सनरी को प्रयोग करते तो जरूर कहा करते थे कि यह दादा जी को कक्षा-9 में प्रथम आने पर मिली थी। देखो इसमें एक सार्टिफिकेट भी चिपका हुआ है। यही कारण था कि यह शब्दकोष घर में किताबों के बीच विशिष्ट स्थान बनाये हुआ था। पिताजी कभी दादाजी की हस्तलिपि की तारीफ करते थे तो कभी उनकी अंग्रजी की। पर मेरे बालमन को ये बातें समझ में नहीं आती थीं। क्यों कि दादा जी मुझे बिलकुल पसन्द न थे।
मैं अक्सर दादा जी पर नाराज होकर कहता ”दादाजी, आपके नाखून कितने गन्दे हो रहे हैं। आप इनको काटते क्यों नहीं हैं?“
दादाजी अपने हाथों को देखते और फिर कहते -“ऐसे ज्यादा तो नहीं बढे़ हैं। खाली बातें क्यों करता है?“
मै कहता था कि आप मेरे दोस्तों से मिलने मत आना तब वे हॅसते हुये कहते थे-”ठीक है यार। तेरे दोस्तो के सामने नहीं आऊंगा । ठीक है?“
मेरी अक्सर उनसे उनके कपड़ो के बारे में भी नोकझोक हुआ करती थी। मैं उनसे कहता -”दादाजी कमीज बदल लीजिये। देखिये यह गन्दी हो गयी है।“
तब दादाजी अपने कपड़ो को देखते और फिर कहते -“ अरे आज सुबह ही तो कमीज बदली है। इतने जल्दी कैसी गन्दी हो जायेगी?”
”दादा जी, आज आप किचन गार्डन में काम कर रहे थे। वहीं गन्दी हो गयी होगी ।” मैं उनको समझाता था पर वे बात नहीं मानते थे। उधर दादाजी जितना मेरे पास आना चाहते मैं उनसे उतनी ही दूर भागना चाहता था।
उन बचपन की यादों को सोचता हुआ अक्सर मुझे भय रहता कि कहीं सचिन भी मुझसे ऐसा ही व्यवहार तो नहीं करेगा? पर मैं अपने मन की आशंकाओं को किसी के साथ बाँट भी नहीं सकता था क्यों कि मुझे मालूम था कि सभी एक ही बात कहेंगे -“आपको तो बस ऐसा ही सूझता है।”
फिर वह दिन भी आ गया जब अपने मां-बाप के साथ सचिन आ पहुंचा। मैं भी उसको लेने हवाई अडडे पहुंचा । इन्टरनैट में मुझसे खूब बात करने वाला सचिन मुझे कुछ गुमशुम सा दिखायी दिया। सबने कहा कि अभी-अभी आया है इसलिये शरमा रहा है। कार की पिछली सीट में वह मेरे पास ही बैठा पर उसने मुझसे कोई ज्यादा बात नहीं की।
मैंने महसूस किया कि वह बीच-बीच में मुझको बड़ी गौर से देख रहा है। पर उसके मन में क्या चल रहा है मैं जान नहीं पाया।
“क्यों सचिन मुझे पहचान रहे हो क्या?” -मैंने बात बढ़ाने के लिये पूछा।
सचिन ने सिर हिला कर हाँमी भर दी पर कुछ बोला नहीं । एक लम्बा रास्ता बस ऐसे ही कट गया पर सचिन में मुझे वह जोश नहीं दिखायी दिया जो वह इन्टरनैट में चैटिंग करते समय दिखाता था।
अगले दिन सुबह सचिन व उसका पापा मेरे कमरे में आये। “उठ गये हैं पापा?”-मेरे बेटे ने पूछा।
“हाँ हाँ, उठ गया हूँ । “- मैंने कहा।
“दादा जी, आपका कमरा तो बहुत साफ सुथरा है पर आप इतने गन्दे क्यों बने रहते हो?” -सचिन का प्रश्न था।
“सचिन। चुप रहो। ”- मेरे बेटे ने उसको डांटा ।
“नहीं नहीं । उसको बोलने दो। “-मैंने कहा और मुझे अपनी वर्षो पुरानी बातें याद आ गयी।
“क्यों सचिन, मेरा क्या गन्दा है ?” मैंने पूछा।
”दादाजी आपके हाथ के नाखून कितने गन्दे हैं। ? पता नहीं आपने कब से नहीं काटे हैं ?“ - सचिन ने कहा।
“बेटा मैंने तो ये नाखून कल ही काटे थे। ये गन्दे कैसे हो सकते हैं? ” - मैंने आश्चर्य से पूछा।
“ कितने बेतरकीब कटे हुये हैं ये। और फिर जरा अपने पैर के नाखूनों को तो देखिये। कैसे हो गये हैं। ये ? ” -सचिन ने कहा और फिर मेज से उठा कर मेरा चश्मा मेरे हाथ में दे दिया।
मैंने चश्मा लगाकर देखने की कोशिश की और फिर हाथ के स्पर्श से पैरों के नाखूनों को देखा जो वास्तव में काफी बढ़े हुये थे। मुझे अपने दादाजी कि याद आ गयी । शायद उनको भी तब दिखायी नहीं देता होगा।
मैंने चश्मा लगाकर देखने की कोशिश की और फिर हाथ के स्पर्श से पैरों के नाखूनों को देखा जो वास्तव में काफी बढे़ हुये थे। मुझे अपने दादा जी कि याद आ गयी।शायद उनको भी तब दिखायी नहीं देता होगा।
”सचिन, तब तो मेरी कमीज भी काफी गन्दी हो गयी होगी? “ - मैंने अनुमान लगा कर पूछा।
मैं समझ गया। सब समय का फेर था। इतने साल बाद मुझे अपने दादा जी याद आ रहे थे और मुझे महसूस हो रहा था कि वे वास्तव में बहुत अच्छे रहे होगें । तभी तो मेरे पिताजी उनकी इतनी बड़ाई किया करते थे। पर एक प्रश्न अभी अनउत्तरित था। आखिर मेरी इन कमजोरियों के लिये जिम्मेवार कौन था? आखिर मैं या फिर मेरी देखभाल करने वाले घर के छोटे लोग। मैंने तो अपने दादा जी के नाखूनों का या फिर कपड़ो का कभी कोई ध्यान नहीं दिया। पर मैंने सचिन को प्यार से बुलाया और कहा- ”बेटे, अब मेरी आखें तुम्हारी जैसी तेज नहीं हैं। मेरी बूढी आखें अब समझ नहीं पाती है कि क्या गन्दा है और क्या साफ । इसलिये जब जब तक तुम मेरे पास हो मैं चीजों को तुम्हारी आँखों से देखूँगा। क्या तुम इस जिम्मेवारी को संभालोगे? शायद सचिन को कुछ भी समझ में नहीं आया। और तुरन्त ढूढकर नेलकटर ले आया। उधर गीली आँखों से मेरे बेटे ने आलमारी से निकाल कर साफ कमीज मेरे ओर बढा दी और रूंधे गले से कहा -” पिताजी यह जिम्मेवारी तो हम लोगों की है। लाईये मैं आपके नाखून ठीक कर दूँ ।
मैं अब चिन्ता मुक्त था क्यों मेरा पोता शायद हमसे कहीं अधिक समझदार था।
1 टिप्पणी:
loved it...all ur stories are so relevant in today's time when relations are loosing its value and younger generation does not have patience to deal with elders and they fail to realize that their turn will also come and they will face similar situations in life.
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