दादाजी
दादाजी सत्तर साल के हो चुके हैं पर हैं बिल्कुल फिट। आज भी वे सारे कार्यों को बड़ी बखूबी से निभाते हैं। इंटरनेट की दुनिया में फेसबुक हो या व्हाट्सएप या फिर गूगल सर्च, दादा जी का कोई मुकाबला नहीं है। मैं अक्सर देखा करता हूँ कि दादा जी अपने दोस्तों को उनकी समस्याओं के समाधान बारे में अक्सर बताया करते हैं । इसीलिए उनके सारे दोस्त उनको एक अच्छा गुरु भी मानते हैं।
इतने ज्यादा स्मार्ट दादाजी होने के बाद भी उनकी घर में की जाने वाली हरकतें मुझे पसंद नहीं थी। डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए दादा जी जब बिस्कुट को चाय में डुबो डुबो कर खाते हैं तो मुझको यह कतई भी अच्छा नहीं लगता था।
"यह भी कोई खाने का तरीका है ?" - मैं मन ही मन सोचता था।
जब कोई बाहर वाला आदमी डाइनिंग टेबल पर बैठा हुआ हो और दादा जी अपने बिस्कुट चाय में डूबा कर खा रहे होते थे तो स्थिति बहुत ही असामान्य सी हो जाती थी। चाय पीने का तो दादाजी को अत्यधिक शौक है। कितनी ही बार भी चाय दे दी जाए वो कभी मना नहीं करते हैं। पर बेचारे शुगर के मरीज होने के कारण वे चाय में चीनी नहीं लेते थे। सुबह की चाय हो या फिर दोपहर की चाय या फिर खाना खाने के बाद तुरंत पीने की चाय वो कभी मना नहीं करते थे।पर हद तो तब हो जाती थी जब खाना खाने के तुरंत बाद भी यदि वो चाय पीते तो साथ में बिस्कुट जरूर मांगते थे। मैं पूछता था -" दादाजी, आपने अभी तो खाना खाया है अब आप फिर बिस्कुट खाने बैठ गए ?"
दादाजी हँस कर कहा करते थे - " बेटा तुम नहीं समझोगे ! यह बुड्ढों की बातें हैं। जब तुम बड़े हो जाओगे तो शायद बहुत सारी बातें तुम को समझ में अपने आप आ जायेंगी। " - बस यूँ ही हँस कर वे बातों को टाल दिया करते।
फिर एक बार छोटी बुआ घर में आयीं। खाना खाने के तुरंत बाद दादा जी ने चाय की डिमांड की थी । बुआ ने उनको चाय बना कर दी और मुझसे कहा -"अरविंद जाओ मीठे बिस्कुट का पैकेट दादा जी को ला कर दे दो। "
मैंने कहा बुआ से कहा - "उन्होंने तो अभी खाना खाया है। अब वह बिस्कुट लेकर क्या करेंगे ? उनको भूख कहाँ लगी होगी? "
बुआ ने हँस कर कहा - "तुम नहीं समझोगे ।"
मैंने कहा - "बुआ समझा दो न ?"
तब बुआ जी ने कहा -"दादा जी की चाय फीकी होती है । इसलिए वह एक या दो बिस्कुट चाय के साथ लेकर अपने मुँह के जायके को ठीक कर लेते हैं। इस प्रकार कम चीनी लेकर वे डॉक्टर की राय का पालन कर लेते हैं। सच में अपने ऊपर अंकुश लगाना बहुत मुश्किल काम है।"
तब मैंने बुआ से पूछा - "बुआ, एक बात और बता दीजिए। ये दादाजी बिस्कुट को चाय में डूबा कर क्यों खाते हैं ? मुझे यह बड़ा अटपटा लगता है।"
बुआ जी ने हँस कर कहा - "यह बात तुमको तब समझ में आएगी जब तुम्हारे बुढ़ापे में तुम्हारे दाँत टूट गए होंगे ।" और फिर बुआ जी जोर जोर से हँसने लगी।
तब मैं मन ही मन सोचने लगा कि मुझे अपने को दादाजी की स्थिति में रखकर ही दादाजी के बारे में विचार बनाना चाहिए। यदि मैं जीवन में ऐसा करूँ तो शायद मुझको बहुत सी बातें अपने आप समझ में आ जायेंगी। आखिर लोगों की कुछ अपनी निजी समस्याएँ भी तो होती हैं !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें