रविवार, 9 अगस्त 2020

हिसाब बराबर

 हिसाब बराबर


         एसी चेयर कार के उस कंपार्टमेंट में अपनी सीटों को ढूँढते हुए जब मेरी नजर उन पर पड़ी तो मैं तो तुरन्त उनको पहचान गया। वह हमारे शहर में एक प्रतिष्ठित सरकारी पद पर कार्य कर चुके थे। जब उनका हमारे शहर से ट्रांसफर हुआ था तो उनको फेयरवेल भी हमारे घर से हुआ था। उनसे इस शुभ अवसर पर जब बातचीत हो रही थी तो मेरी माता जी ने मेरा परिचय उनसे करवाया और कहा था - "पांडे जी, यह मेरा बेटा है और इसी वर्ष इसने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की है। यदि आपका आशीर्वाद मिल जाए तो अवश्य ही कोई अच्छी नौकरी प्राप्त हो जाएगी।"

        उस समय तो मैं अपनी माताजी से कुछ नहीं बोला पर बाद में मैंने अपनी माता  जी को समझाया -"अम्मा, मुझे कोई क्लास फोर्थ की नौकरी तो मिलने वाली नहीं है। जो मात्र सिफारिश से दे दी जाये। मुझे तो यूपीएससी से इम्तिहान पास करना पड़ेगा तभी कोई नौकरी मिलेगी। इसलिए आप मेरी नौकरी के बारे में कभी भी किसी से कुछ भी ना कहें।"

      बात आई और चली गई। फिर मुझे यूनिवर्सिटी में एक पद प्राप्त हो गया और सौभाग्य से मुझको एक ट्रेनिंग के लिए भी सेलेक्ट कर लिया गया। यह ट्रेनिंग टोक्यो जापान में होने वाली थी। पर मेरे पास तो पासपोर्ट ही नहीं था। अब जल्दी पासपोर्ट बनवाने के लिए मेरे लिए जरूरी था कि मैं अपने डाक्यूमेंट्स को किसी बड़े अधिकारी से सत्यापित कर के भिजवाऊँ। मैं बहुत परेशान था। 

     तब माताजी ने कहा यह तो बहुत आसान है तुम पाण्डे जी के पास चले जाना वह तुम्हारा काम कर देंगे। मैं उनके घर में गया और मैंने सारी बातें उनको बतलाईं। तब उन्होंने मुझको प्रत्युत्तर दिया -"बेटा, यह तो ठीक है। पर इस कार्य को वही कर सकता है जो कम से कम पिछले दो वर्ष से तुम को भली भांति जानता हो।"

     मैं उनकी बात का आशय समझ गया और धीरे से उनके घर से चलता बना। खैर ईश्वर एक रास्ता बंद करता है तो कहते हैं कि वह दूसरा रास्ता खोल देता है। यही कुछ मेरे साथ भी हुआ। मेरा पासपोर्ट बन गया किसी दूसरे अफसर की अनुशंसा पर। मैं जापान से लौट कर वापस आया तो पता चला कि मेरा सेलेक्शन यूपीएससी में हो गया है। फिर आने वाले समय में मैंने न जाने कितने लोगों का पासपोर्ट हेतु वेरिफिकेशन किया। आज इतने साल बाद आज ट्रेन में उनसे सामना न जाने कितनी बीती बातों की याद दिला रहा था। मैंने उनको देखा और अनायास ही अनदेखा भी कर दिया। जाने कुछ घटा ही ना हो।

       पूरी यात्रा के दौरान मैं उनके ऊपर निगाहें बनाए रखा और मैंने देखा वह बड़ी असमंजस में हैं। लगातार बीच बीच में वे मुझको देख रहे थे। मैं मन ही मन उनकी दुविधा का आनंद लेता रहा। आखिर में ट्रेन गंतव्य में पहुंची। स्टेशन आ चुका था और मुझको लेने के लिए मेरा स्टाफ चलती ट्रेन में चढ़कर यह बताने के लिए पहुंच चुका था कि वे कितने कुशल हैं। अब पांडे जी की दुविधा चरण में पहुंच चुकी थी। वह अपने को रोक न सके। 
   उन्होंने खड़े होकर पूछा -"आप बिशन हो ना? 

      मैंने सपाट आँखों से उनकी ओर को देखा और कहा -"  जी मैं बिशन स्वरूप, एसएसपी ! शायद आज आपने अखबार में मेरे आने का समाचार देख लिया होगा। इसीलिए शायद आप मुझे पहचान रहे हैं।"

     फिर बिना उनकी ओर देखे अपने स्टाफ की ओर अग्रसर हो गया। मैंने स्टाफ को बताया कि कौन कौन सा मेरा सामान है। स्टाफ के जय हिंद सर, जय हिंद सर के अभिवादन के बीच मैंने पांडे जी की आवाज सुनी। वह कह रहे थे -"मैं, जेके पांडे, एडीशनल डायरेक्टर................"

     मैंने उनकी बातों को अनसुना कर दिया और दरवाजे की ओर बढ़ चला। साथ में चल रही मेरी बहन ने मुझसे कहा-    " आपने पहचाना नहीं उनको ?  वे तो पांडे अंकल हैं।"

    शायद पांडे जी हमारे पीछे कान लगाए हमारी बातें सुन रहे थे। यह जानकर मैंने थोड़ी जोर से कहा - "हमारे मैनुअल में बताया गया है कि आप उसी आदमी को पहचानते हैं जिसको आप कम से कम दो साल से जानते हों। मैं तो निजी रूप से उनको एक दिन के लिए भी नहीं जानता हूँ।"

       मैं पांडे जी के चेहरे पर आते हुए उतार-चढ़ाव को नहीं देख पाया क्योंकि वह मेरे पीछे से थे। पर मैंने अपना हिसाब ईश्वर की कृपा से पूरा कर लिया था। फिर थोड़ी ऊँची आवाज में कहा -" तुम नहीं समझोगी। यह एक पुराना हिसाब था जो आज बराबर हो गया है।"😊😊

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