रविवार, 16 अगस्त 2020

अदिति दी

 अदिति दी❤❤❤❤😊


           हम फौजियों की तो कुछ जिंदगी ही कुछ ऐसी है कि हर दूसरे तीसरे साल हमारा ट्रांसफर हो ही जाता है। ट्रांसफर के बाद ट्रांजिट एकोमोडेशन में रहना, ढेर सारे क्रमबद्ध बनाये गए बक्से जिनको जरूरत के अनुसार खोलना फिर पूरी एकोमोडेशन का अलॉटमेंट ! और फिर दोबारा ट्रांसफर। 

    अपने पति के नए ट्रांसफर के पश्चात एक बार मैं फिर एक नए शहर में आ बसी। फिर वही चक्कर, बच्चों के लिए नए स्कूल और अपनी नौकरी के लिए एक नया कॉलेज ढूँढना। सारी समस्याएं सेटल्ड हुई और मैं नौकरी करने के लिए अपने नए स्कूल में पहुंच गई। स्टाफ रूम में मुझको अदिति मैम के बगल में बैठने की सीट मिली। मेरी उनसे बातचीत हुई और वह मुझे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता लगीं। 

       कुछ दिन स्कूल में रहने के पश्चात मुझको मालूम चला कि अदिति मैम के पति आर्मी में कर्नल थे और रिटायर हो गए हैं। वे एक बड़े सम्पन्न परिवार से थीं। पर पता नहीं क्यों उनकी रेपुटेशन स्कूल में बहुत अच्छी नहीं थी। ऐसा क्यों है मुझे कुछ समझ में नहीं आया। पर मैंने महसूस किया कि वे तो दूध का दूध और पानी का पानी करने वाली महिला थीं। उनके कामों में तो कोई बनावट नहीं थी। फिर भी मुझे ऐसा लगने लगा था कि उनसे दोस्ती बढ़ाकर कहीं मैं फँस न जाऊं। उनकी और मेरी कोई बराबरी भी न थी । मेरे पति तो काफी छोटे पद पर थे। पर मेरी मजबूरी थी कि स्टाफ रूम में मुझको सदैव उनके पास ही बैठना पड़ता था। 

         समय बीतता गया और मेरी उनके साथ दोस्ती दिन-प्रतिदिन गहरी होती ही चली गई । मानो मेरी बड़ी बहन हों। पर वह सदैव मेरे साथ भी पाई पाई का हिसाब किया करतीं थीं। ना किसी का लेना ना किसी का देना। पर अपने दो-तीन वर्ष के स्टे के दौरान मैंने देखा की उन्होंने मुझको एक से एक खूबसूरत गिफ्ट भेंट किए थे। पर जब भी मैंने उनसे कोई छोटी सी भी चीज मंगाई तो चाहे वह पांच ही रूपयों की भी क्यों ना हो उन्होंने पैसे तुरन्त मुझसे मांग लिए। यह एक अजीब बात थी। एक और तो वह महंगे गिफ्ट भी मौके बेमौके ऐसे ही दे दिया करती थीं और दूसरी ओर वह पाई पाई का हिसाब रखती थीं । मुझको भी कोई आपत्ति न थी क्योंकि मैं भी रुपियों सम्बन्धी हिसाब को बड़ा स्पष्ट रखने पर विश्वास रखती थी। 

        फिर वही हुआ । मेरी पति का ट्रांसफर ऑर्डर आ गया और हमारे शहर छोड़ कर जाने का समय निश्चित हो गया। मैंने सोचा की अदिति दी के मेरे ऊपर बहुत सारे अहसान हैं और जब मैं स्कूल छोड़ कर जाऊंगी तो वह अपनी आदत के अनुरूप मुझको जरूर ही कोई अच्छा गिफ्ट भेंट करेंगी। अतः उनके अहसान से बचने के लिए मैंने अपने पति से कहा कि इस मौके पर मैं अदिति जी को एक बहुत सुंदर और महंगी साड़ी भेंट करना चाहती हूँ ताकि वे सदैव मुझको याद रखें । मेरे पति ने पूर्ण सहमति दे दी और मैंने उनके लिए शानदार कांजीवरम की साड़ी खरीदी।

    साड़ी देते समय मैंने कहा - "मैम, आप जब भी इसे पहनेंगीं मुझे याद जरूर करेंगीं। "

    उन्होंने कहा -"तुमको इतनी महंगी साड़ी नहीं लानी चाहिए थी। याद दिलाने के लिए महंगी चीज की जरूरत नहीं होती। बहुत छोटी छोटी चीजें भी बहुत महत्वपूर्ण होती हैं।"- मैं उनकी बात को समझ नहीं पायी।

       हमारे जाने के दिन आ गए। ठीक जाने की सुबह वह अपने हस्बैंड के साथ मेरे घर आयीं और उन्होंने एक छोटा सा डिब्बा मुझको भेंट किया और मुस्कराकर कहा -"अनुराधा, देखना मैं तुमको रोज सुबह-शाम याद आया करूँगी।"

       मैंने जल्दी में डिब्बे को एक बक्से में रख लिया क्योंकि मुझको उसको खोलने के लिए अब अवसर ही नहीं था। हम दूसरे शहर में चले गये। काफी समय बाद वह डिब्बा मुझको एक बक्से में मिला। मैंने बड़ी ही आतुरता से उसको खोला तो पाया कि उसमें एक छोटा सा प्लास्टिक का आटा निकालने का स्कूप रखा हुआ है। मुझे समझ में नहीं आया अदिति मैम ने इतना छोटा और सस्ता गिफ्ट मुझको क्यों दिया होगा!इससे अच्छा तो होता कि वह मुझको गिफ्ट ही नहीं दी देतीं। खैर मैंने उस आटे के स्कूप को अपने आटे के बर्तन में दैनिक प्रयोग के लिए रख दिया। सचमुच, मेरे लिए यह बहुत बड़े आश्चर्य का विषय है कि रोज सुबह और शाम आटा निकालते समय आज भी मुझको अदिति दी की याद आ जाती है। मैं उनको कभी भूल नहीं पाती हूँ। अब मुझे समझ में आया है कि उन्होंने इतना छोटा व इतने कम पैसे का पर इतना महत्वपूर्ण गिफ्ट मुझको क्यों भेंट किया था। सचमुच अदिति जी आप अद्भुत व्यक्तित्व की धनी हैं।

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